बलौदाबाजार. छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के कटगी गांव अपने आप में बेहद अनोखा है. इस गांव के हर घर में कपड़े की बुनाई की जाती है और इसके बाद वही कपड़े मार्केट में बिकने के लिए भेजे जाते हैं. गांव के प्रत्येक घरों में हाथकरघा मशीन लगी हुई है. इस मशीन से तरह-तरह की साड़ियों के साथ ही कई प्रकार के कपड़े तैयार किए जाते है. आईए जानते है आखिर कपड़े की बुनाई होती कैसे है.
बलौदाबाजार के जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर कटगी गांव है, जहां की जनसंख्या लगभग 6 हजार है. इस गांव के प्रत्येक घरों में हथकरघा मशीन लगी हुई है. यह मशीन नहीं बल्कि देवांगन समाज द्वारा कपड़ा बुनने के लिए बनाई गई लकड़ी का खटका है, जिसे हाथकरघा मशीन का नाम दिया गया है.
-एक धागे को पीलो कर एक सूती कपड़ा बनता है. यह उन्नत किस्म के कपड़े होते हैं, जिसे बनाने में लगभग 2 से 3 दिनों का समय लगता है. वहीं डिजाइनिंग की गई तरह-तरह की साड़ियां भी यह लोग खुद ही बनाते हैं, जिनको बनाने में लगभग सप्ताह भर का समय लगता है. इसके बदले में इन्हें अच्छे दाम भी मिलते हैं.
सबसे पहले जो महाजन होता है, जिसे बड़े सेठ कहा जाता हैं. वहीं मशीन को धागे देते हैं. अगर उनको डिजाइनिंग साड़ी बनवानी है तो अलग-अलग तरह से धागे देते हैं और प्लेन कपड़ा बनवाना है तो फिर कलरफुल धागे देते हैं. फिर इस गांव के लोग उस धागे को लाते हैं फिर इसी धागे से कपड़े एवं अलग-अलग प्रकार का सामान बनाते हैं. कपड़ा बनाने के लिए इसे कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है उसके बाद ही यह कपड़ा पूरी तरह से बनकर तैयार होता है.
ही यह कपड़ा बनकर पूरी तरह से तैयार हो जाता है फिर इन कपड़ो को महाजन वह इन लोगों से लेते हैं और दान देते हैं. इसके बाद यही कपड़ा छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के मार्केट समेत देश-विदेश में में कई जगहों पर बिकता है. इस तरह से इन लोगों का व्यापार चलते रहता है, जिसकी वजह से इन्हें आर्थिक सहायता भी मिलती है और काम के लिए घर से दूर कहीं जाना नहीं पड़ता.
गांव में इस कपड़ा बुनने वाले समाज के लिए एक अलग सी संस्था भी बनाई गई है, जिसका नाम श्रीराम हथकरघा बुनकर समिति रखा गया है, जो लोग यहां से मजदूरी करना चाहते हैं वह भी इस संस्था से जुड़कर मजदूरी कर सकते हैं, लेकिन घरों में ही लोग खटका बनाकर कपड़ा बुनने का काम करने लगे हैं क्योंकि यह उनके लिए सहूलियत हो जाते हैं.