धर्म न्यूज़ डेस्क :- नवरात्रि के तीसरे दिन आज माता चंद्रघंटा का दिन है। जहां मां दुर्गा के तीसरे रूप में माता चंद्रघंटा की पूजा होगी। प्रोटोजो पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन का विधान होता है। माता का यह सभी प्रकार के विचित्र दिव्य अवशेषों को प्रसारित करने वाला और नियंत्रित करने वाला होता है। सिद्धांत यह है कि जब असुरों का आक्रमण काफी बढ़ गया तो देवताओं ने मां की आराधना के लिए अपना संहार किया। इसके बाद मां ने चंद्रघंटा के रूप में असुरों का संहार किया।
इस मंत्र का जाप करें-
देवी प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनी।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
जानिए क्या है पूजन विधि
माँ चंद्रघंटा की पूजा का शास्त्रीय विधान अपनाते रहना चाहिए। शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस दिन माता की पूजा में विभिन्न प्रकार के सुगंधित पुष्पों और विभिन्न प्रकार के नैवेद्यों और रंगों से करने का विधान होता है। साझीदार को विदेशी फलों की प्राप्ति होती है। शरीर में पीड़ाओं का अंत होता है। पूजा और प्रार्थना के बाद माता को प्रणाम करना चाहिए पूजा और प्रार्थना के बाद माता को अर्पण करना चाहिए।
माता चंद्रघंटा का रूप
माता चंद्रघंटा के रूप के बारे में झंडावालान मंदिर के महंत ने बताया कि, जहां घंटाघर में चंद्रघंटा की स्थिति होती है, वहीं चंद्रघंटा कहा जाता है। अर्थात् अभिन्न पर अर्धचंद्र शोभित हो रहा है। ऐसी नव दुर्गा की इस तृतीय प्रतिमा को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। यह देवताओं का संहार भयानक देवताओं की नाद से होता है। यह माता दस भुजा धारी है। वहीं बाएं हाथ में ऊपर से पद्म, वाण, धनुराम, माला आदि शोभित हो रहे हैं। किसी भी व्यक्ति के हाथ में त्रिशूल, गदा, तलवार, कमान और युद्ध की मुद्रा शोभित हो रही है।
संकलनकर्ता- गजाधर पैंकरा, जशपुर