नन्दकिशोर दास
खगड़िया ब्यूरो। जिले के परबत्ता प्रखंड के सौढ उत्तरी पंचायत के बुद्धनगर भरतखण्ड के रविदास बैठका वाहे गुरु सतनाम से गूंज उठा। सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह महाराज की जयंती पर बुद्धनगर भरतखण्ड में श्रद्धापूर्वक याद किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि शिक्षक सिद्धार्थ कुमार ने किया। उन्होंने गुरूगोविन्द सिंह महाराज की जयंती पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरू गोविन्द सिंह का जन्म 1666 को बिहार राज्य के पटना साहिब में नौवें सिख गुरु श्री तेगबहादुरजी और माता गुजरी के घर हुआ था। शिक्षक सिद्धार्थ कुमार ने बताया कि गुरु गोविंद सिंह जी महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, एक श्रेष्ठ कवि थे, आयुर्वेद का अध्ययन था, खगोलशास्त्र के ज्ञाता थे। ब्रज, अवधि, फ़ारसी, अरबी भाषा के भी जानकार थे। जब संघर्ष का अवसर आया तब अपनी तलवार का, अपनी कृपाण का ज्ञान विश्व को दिया। शिक्षक सिद्धार्थ कुमार ने बताया कि गुरू गोविन्द सिंहजी विश्व के इतिहास में अद्वितीय एवं अदभुत बलिदानी थे। अपने देश सेवा में पिता, चारों पुत्र, अपनी माताजी एवं स्वयं का बलिदान दिया।
जिसका समकक्ष उदाहरण इतिहास के किसी पन्ने में ढूंढने से भी नहीं मिलता। आपने अन्याय एवं अत्याचार से जूझने में सर्वस्व बलिदान कर दिया और कभी हार नहीं मानी। शिक्षक सिद्धार्थ कुमार ने बताया कि सिख के दसवें और अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ऐसे वीर संत थे, जिसकी मिशाल दुनिया के इतिहास में कम ही मिलता है। उन्होंने मुगलों के सामने कभी घुटने नहीं टेके। शिक्षक सिद्धार्थ कुमार ने बताया कि गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। आनंदपुर साहिब में वैशाखी के अवसर पर एक धर्मसभा के दौरान उन्होंने पंच प्यारों को चुना। उनके ही निर्देश पर सिखों के लिए खालसा पंथ के प्रतीक के तौर पर 5 ककार यानि केश, कंघा, कृपाण, कच्छ और कड़ा अनिवार्य कर दिया। शिक्षक सिद्धार्थ कुमार ने बताया कि वाहे गुरु की खालसा, वाहे गुरु जी फतेह जैसे वाक्य गुरू गोविन्द सिंह जी की वीरता को बयां करती है।15 वीं सदीं में गुरुनानक देवजी महाराज ने सिख पंथ की स्थापना की। गुरु गोविंद सिंह जी के पिता गुरु तेग बहादुर भी इस सिख पंथ के गुरु थे। गुरु गोविंद सिंह की शिक्षाएं कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें। जयंती समारोह के मौके पर शिक्षक सिद्धार्थ कुमार, उत्कर्ष कुमार, आशु कुमार, राजकिशोर दास, मनोरंजन कुमार , सत्यम, बालवीर, राजकुमार दास, रोहन कुमार, गिरजानंदन दास, नागेश्वर दास, आरती कुमारी आदि मौजूद थीं।