धर्म न्यूज डेस्क :- धर्म ग्रंथों के अनुसार, नवरात्रि का चौथा दिन देवी कूष्मांडा को समर्पित रहता है। इस दिन की मुख्य देवी यही हैं। इस बार 18 अक्टूबर, बुधवार को इनकी पूजा की जाएगी। जानें पूजा विधि, मंत्र आरती सहित पूरी डिटेल…
शारदीय नवरात्रि की चतुर्थी तिथि 18 अक्टूबर, बुधवार को है। इस दिन देवी दुर्गा का कूष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी कूष्मांडा की पूजा करने से लंबी उम्र के साथ-साथ मान-सम्मान और बेहतर स्वास्थ्य भी मिल सकता है। अनेक धर्म ग्रंथों में देवी की महिमा का वर्णन किया गया है। आगे डिटेल में जानें देवी कूष्मांडा की पूजा विधि, आरती, कथा आदि बातें…
ऐसा है माता का स्वरूप (Navratri ke Choute Din Kis Devi Ki Puja Kare)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवी कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। इनके एक हाथ में कमण्डल, दूसरे में धनुष, तीसरे में बाण, चौथे में कमल का फूल, पांचवें में कलश, छठे में चक्र और सातवें में गदा है। आठवें हाथ में मंत्र जाप माला है। देवी कूष्मांडा का वाहन सिंह है। देवी दुर्गा का ये रूप बहुत ही सौम्य है। इनकी पूजा से भक्तों के सभी रोग और शोक मिट जाते हैं।
इस विधि से करें देवी कूष्मांडा की पूजा (Devi Kushmanda Ki Puja Vidhi)
शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन यानी 18 अक्टूबर, बुधवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद घर में किसी साफ स्थान पर एक बाजोट रखें और इस पर लाल कपड़ा बिछाएं। इसके ऊपर देवी कूष्मांडा की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित कर शुद्ध घी का दीपक जलाएं। देवी को तिलक करें और फूल माला पहनाएं। इसके बाद अबीर, गुलाल, चंदन, हल्दी, मेहंदी, आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। देवी को मालपुए का भोग लगाएं। नीचे लिखे मंत्र का 11 बार जाप करें और आरती करें-
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां कूष्मांडा की आरती (Devi Kushmanda Aarti)
कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे। सुख पहुंचती हो मां अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
ये है देवी कूष्मांडा की कथा (Devi Kushmanda Ki Katha)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवी कूष्मांडा ने अपने उदर यानी पेट से ही इस संसार को उत्पन्न किया है, इसलिए इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। ये एकमात्र ऐसी शक्ति है जो सूर्य लोक में निवास करती हैं, इतनी क्षमता अन्य किसी देवी-देवता में नहीं है। देवी को कुम्हड़े यानी कद्दू की बलि अति प्रिय है। कूष्मांडा देवी की पूजा से संसार का हर दुख दूर हो जाता है।
Disclaimer-
यहां दी गई समस्त जानकारी सामान्य मान्यताओं एवं जानकारियों पर आधारित है. इसकी ‘आईबीएन 24 न्यूज़’ पुष्टि नहीं करता है। इससे संबंधित ज्योतिषीयों एवं विशेषज्ञों की सलाह लें।
संकलनकर्ता- गजाधर पैंकरा, जशपुर