दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि जीवनसाथी द्वारा सेक्स से इनकार करना मानसिक क्रूरता का एक रूप माना जा सकता है, लेकिन तब जब ये लंबे वक्त तक लगातार और जान-बूझकर किया जा रहा हो।
हाईकोर्ट ने पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाकर तलाक मांगने वाले व्यक्ति की याचिका को खारिज कर दिया. पति का आरोप था कि पत्नी उसके साथ साथ नहीं रहना चाहती. वह सेक्स से मना करती है. उसे घर जमाई बनाना चाहती है।
पति का दावा था कि पत्नी को केवल कोचिंग सेंटर चलाने में दिलचस्पी थी और कोई न कोई बहाना बनाकर वह उसे छोड़ देती थी और सेक्स करने से भी मना कर देती है. पत्नी की अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस मनोज जैन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हालांकि सेक्स से इनकार करना मानसिक क्रूरता का एक रूप माना जा सकता है जब यह लगातार, जानबूझकर और काफी समय तक हो. लेकिन कोर्ट को इस तरह के संवेदनशील और नाजुक मुद्दे से निपटने के दौरान अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह के आरोप केवल अस्पष्ट बयानों के आधार पर साबित नहीं किए जा सकते, खासकर तब जब शादी भी विधिवत संपन्न हुई हो. कोर्ट ने माना कि पति अपने प्रति किसी भी मानसिक क्रूरता को साबित करने में विफल रहा और वर्तमान आरोप सिर्फ वैवाहिक बंधन में सामान्य टूट-फूट का मामला हैं और सबूतों से संकेत मिलता है कि कलह पत्नी और उसकी सास के बीच थी।
बेंच ने कहा, इस बात का कोई सकारात्मक संकेत नहीं है कि पत्नी का आचरण इस तरह का था कि उसके पति के लिए उसके साथ रहना संभव नहीं था. मामूली चिड़चिड़ापन और विश्वास की हानि को मानसिक क्रूरता के साथ जोड़ा नहीं जा सकता है. इससे पहले निचली अदालत ने भी इस जोड़े को तलाक देने से मना कर दिया था।
रिपोर्टर- गजाधर पैंकरा, जशपुर