जशपुर बगीचा:- आचार्य डॉ अमर वाजपेयी ने श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस सनातन संस्कृति की संस्कारा परंपरा को जीवंत बनाने की बात कही।उन्होंने बताया कि कुसंस्कारिता के कारण लगातार समाज में विषमताओं के साथ संस्कृति का क्षरण हो रहा है।संस्कारों के संबल के साथ हम सभी को मिलकर सुधार की दिशा में प्रयास करना होगा जिसकी शुरुआत हम अपने आप से अपने घर से करें।
उल्लेखनीय है कि बगीचा स्थित रौनी रोड में प्रयागराज से पधारे आचार्य डॉ अमर वाजपेयी के मुखारविंद से श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण पान श्रद्धालु कर रहे हैं।कथा के द्वितीय दिवस आचार्यश्री ने संस्कार परंपरा में नामकरण का महत्व बताते हुए श्रेष्ठ शाब्दिक अर्थों के अनुसार नाम रखने की बात कही।उन्होंने बताया कि नाम का जीवन में बड़ा प्रभाव होता है जो मानवीय व्यवहार में परिलक्षित होता है।
दुंदुभी और धुंधकारी की कथा के दौरान उन्होंने व्यक्तित्व को गढ़ने के सूत्र दिए।उन्होंने कहा कि जब आप जीवन में सद्गुणों को धारण कर उसे अपने जीवन में उतारेंगे तो आपके जीवन में आध्यात्म का विकास होना सुनिश्चित हो जाता है और आपका व्यक्तित्व प्रखर होता चला जाता है।
डॉ जगदीश पाठक ने कथा महात्म्य के दौरान बताया कि जब हमारे पितर पूर्वज रुष्ट रहते हैं तो घर में क्लेश,कलह और अशांति के साथ दुःख का वातावरण निर्मित होता है।जब घर में सकारात्मक ऊर्जा तरंगित होती है तो पितर तृप्त होते हैं।आज घरों में तामसिकता के कारण हर घर मे दुःख है।डॉ पाठक ने घर की माताओं को पवित्रता के साथ रसोई के संचालन का निवेदन किया।उन्होंने कहा कि काम,क्रोध,मद, लोभ,दम्भ,द्वेष से दूर रहकर कथा का श्रवण करें।श्रोताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आज युवा नशे के साथ व्यभिचार की ओर अग्रसर हो रहे हैं जो गंभीर चिंता का विषय है।युवाओं को नशे से दूर रहने की जरुरत है।
कथा महात्म्य के दौरान आचार्य डॉ अमर वाजपेयी ने कहा कि हम जब भगवत तत्व की महत्ता ही भागवत का महात्म्य है।श्रीमद्भागवत महापुराण के महात्म्य का वर्णन करते हुए आचार्य श्री ने बताया कि परमात्मा सचिदानंदस्वरुप हैं।
सच्चिदानंद तीन शब्दों से बना है सत, चित और आनंद।सत वह है जिसका कभी विनाश नहीं होता,चित अर्थात चैतन्यता जिसमें जड़ता नहीं है।चेतन के प्रति मोह हो जाए तो वह तारने वाला होता है और आनंद जो परब्रम्ह स्वरुप है।ईश्वर अंश जीव अविनाशी के।माध्यम से उन्होंने बताया कि परमात्मा का स्वरुप हर जीव में विद्यमान है।निग्रह की शक्ति से जीवात्मा संसार मे बंध जाती है।अनुग्रह शक्ति के संचार से परमात्मा के प्रति अभिलाषा जाग जाती है।जिसके बाद जीवात्मा की यात्रा मुक्ति की ओर अग्रसर होती है।जीवन के दुख असुर के रुप में विद्यमान हैं।जब हम अपने शरीर में रामराज की स्थापना कर लें तो सारे दुःख दूर हो जाएंगे।
भक्ति पर उन्होंने बताया कि संशय के बिना पुरुषार्थ करते जाएं जिससे आध्यात्मिक व सांसारिक विकास के साथ मोक्ष की प्राप्ति होगी।श्रीमद्भागवत कथा का मूल रहस्य यह है कि सत्य के प्रति आपकी निष्ठा आपका पूर्ण विश्वास जागृत हो जाए।जब मन के उस पार जाएंगे तभी परमात्मा के संसार मे प्रवेश करेंगे मन के इस पार तो संसार है जहां बस मोह माया है।