मौसमी उतार चढ़ाव ने काला धान जैसे संवेदनशील फसल को खासा नुकसान पहुंचाया है। बीते वर्षों तक नवापारा, घिनारा, बोतली, जिल्गा व रामपुर के किसान 250 एकड़ में इसकी खेती करते थे। इस साल यह रकबा 50 एकड़ में सिमट गया है।
कोरबा मौसमी उतार चढ़ाव ने काला धान जैसे संवेदनशील फसल को खासा नुकसान पहुंचाया है। बीते वर्षों तक नवापारा, घिनारा, बोतली, जिल्गा व रामपुर के किसान 250 एकड़ में इसकी खेती करते थे। इस साल यह रकबा 50 एकड़ में सिमट गया है। अगस्त माह में पिछड़ी वर्षा की वजह से किसानों को इस बार काला की जगह मोटा धान की बोआई करनी पड़ी है।
करीब चार साल पहले करतला ब्लाक के किसानों ने सामूहिक खेती शुरू की। साल दर साल खेती का रकबा बढ़ता चला गया और वर्ष 2021-22 में रकबा शीर्ष पर रहा पर अब इस वर्ष 2023-24 में रकबा एकदम से नीचे गिर गया है। काला धान की खेती के विस्तार को मौसमी मार ने इस बार प्रभावित किया है। काला धान के अलावा लाल धान की भी उपज की जा रही थी। इस बार दोनाें ही फसल की उपज डांवाडोल है। क्षेत्र के किसान आम, काजू, मूंगफली की सामूहिक खेती करते हैं। इसके लिए उन्होने महामाया सहकारी समिति का गठन किया हैं। समिति के अध्यक्ष लाखन सिंह का कहना है कि अन्य फसल की तुलना में काला धान की देखरेख अधिक करनी पड़ती हैं। जुलार्ई माह में 300 से भी अधिक किसानों ने इसकी बोआई की थी, लेकिन अगस्त माह में 26 दिन तक बारिश नहीं होने की वजह से कई किसानों के खेत के फसल नष्ट हो गए। किसानों ने दोबारा काला धान के बजाए मोटा धान की बोआई कर ली है। इस वजह से रकबा बीते वर्ष की तुलना में घट गया है। बताना होगा लाल और काला धान बोआई के लिए करतला विकासखंड में पहल हुई है वह अन्य विकासखंड में नजर नहीं आ रही। आधुनिक खेती के लिए जिला कृषि विभाग का अपेक्षित सहयोग नहीं होने की वजह से जिले में काला व सुगंधित धान की खेती रकबा में वृद्धि नहीं हो पा रही है।
काला चावल पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है। भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर पूर्व क्षेत्र और दक्षिणी भागों मे की जाती है। औषधि गुण वाले इस चावल मांग बड़े बाजारों में है। शापिंग माल में डेढ़ सौ रूपये किलो तक इसकी बिक्री होती है। सुगर, अल्सर जैसे बीमारी से पीड़ित लोगाें के अलावा प्रसूता के लिए लाभ दायक होता है। बड़े बाजार में इसकी खासी मांग होने के कारण किसान इसकी उत्पाद को विस्तार देने की तैयारी में लगे थे, लेकिन मौसम की मार ने किसानों के मेहनत पर इस वर्ष पानी फेर दिया। मौसम विभाग के मिली जानकारी अनुसार आगामी तीन दिनों तक आसमान में बदली और वर्षा की संभावना है।
महामाया समिति के अध्यक्ष लाखन सिंह का कहना है किसानाें ने प्रधानमंत्री किसान बीमा के अंतर्गत बीमा कराया है। जिन किसानों के फसल को नुकसान हुआ है, वे अब बीमा कंपनी से क्षतिपूर्ति की आस लगाए बैठे हैं। एक एकड़ में काला धान 10 से 12 क्विंटल होता है, लेकिन इस वर्ष जिस तरह से बे-मौसम वर्षा हो रही उससे उपज 10 क्विंटल से भी कम आने का अनुमान है। किसानों का कहना है बेमौसम वर्षा काला धान ही नहीं बल्कि मोटा और पतला धान के उपज को नुकसान पहुंचाया है। देरी से हुई वर्षा के चलते सब्जियों की उपज कम हुई। इस वजह से सब्जी बाजार अब भी महंगाई से नहीं उबर पाया है।
जिल्गा में रकबा सर्वाधिक
काला धान की खेती में जिल्गा गांव कर रकबा सर्वाधिक है। यहां 10 किसानों ने मिलकर 16 एकड़ में खेती की है। महामाया समूह से जुड़कर खेती कर रहे किसानों के पास अभी 1200 क्विंटल का पुराना स्टाक शेष है। धान जितना अधिक पुराना होता है उसकी गुणवत्ता उतनी ही अधिक होती है। पुराने स्टाक के चावल की बिक्री कर इस वर्ष की क्षति का समायोजन किया जाएगा। धान के रकबा में आई कमी से समूह के किसानों ने इस बार मूंगफली का रकबा बढ़ा दिया है। बीते वर्ष 120 किसानों ने 450 एकड़ में मूंगफली की बोआई की थी। इस बर्ष रकबा 750 हो गया है। किसानों की माने तो पखवाड़े भर के भीतर फसल तैयार हो जाएगी। उपज अच्छी रही तो तेल पेराई का काम भी शुरू किया जाएगा।
ये भी हैं फायदे
इन चावलों का गहरा रंग इनमें मौजूद विशेष एंटीआक्सीडेंट तत्वों के कारण होता है जो आपकी त्वचा और आंखों के साथ दिमाग के लिए फायदेमंद होता है। काले चावलों में भरपूर मात्रा में फाइबर मौजूद होता है, जो कब्ज जैसी समस्याओं को खत्म कर पेट फूलना या पाचन से जुड़ी अन्य समस्याओं में भी फायदा करता है। इसे रोज खाने पर भी सेहत को नुकसान नहीं पहुंचता। आमतौर पर लोग वजन को नियंत्रण में लाने के लिए चावल खाना लगभग छोड़ देते हैं, वहीं काले चावल आपके लिए फायदेमंद साबिक हो सकते हैं, क्योंकि काले चावल मोटापा कम करने के लिए बेहद लाभदायक हैं।