फिस नहीं देने पर बच्चों को कर दिया गया शिक्षा के अधिकार से वंचित, शिकायत के बाद भी तमाशा देखता रहा शिक्षा विभाग
रोहित यादव/बलरामपुर:- यह पुरा मामला है बलरामपुर जिले का जहां प्राईवेट स्कूल के मनमानी के आगे शिक्षा विभाग नतमस्तक है। आरटीई मतलब राईट टू एज्युकेशन अर्थात् शिक्षा का अधिकार, शिक्षा के अधिकार 2002 कानून के तहत् 6 से चौदह वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार मिलता है। जिसका पालन किया जाना सबके लिये आवश्यक है। शिक्षा का अधिकार कानून आने के बाद सरकार ने यह व्यवस्था दी कि वे बीपीएल परिवार जो कि अपने बच्चों को अच्छे निजी शिक्षा संस्थान में पढ़ने का सपना देखते हैं, वे भी अपने बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ा सकें, इसके लिये सरकार ने जिला स्तर एवं ब्लॉक स्तर पर व्यवस्था के तहत् लाटरी सिस्टम से बच्चों को विभिन्न चिन्हांकित निजि विद्यालयों में प्रवेश देने की प्रक्रिया शुरू कि, जिसके तहत् बच्चों के पढ़ाई का पुरा खर्च सरकार स्वयं वहन करती है और स्कूल का फिस सरकार सीधे स्कूल को देती है। यह व्यवस्था छत्तीसगढ़ में भी लागू है और सरगुजा संभाग के जिलों में भी इस पर कार्य हो रहा है और हजारों बच्चें शिक्षा के अधिकार कानून के तहत् सरकार की मापदण्ड अनुसार विद्यालय में कक्षा 1 में लिये जाने वाले कुल प्रवेश का 25 प्रतिशत एडमिशन शिक्षा के अधिकार के तहत् देकर बीपीएल एवं वंचित वर्गों के बच्चों के भविष्य को सुधारने का कार्य कर रही है। लेकिन सरकार के इस नियम व नीति को कुछ निजी विद्यालय पलिता भी लगा रहे हैं, कई जगहांे से यह शिकायत आती है कि आरटीई के तहत् प्रवेश लिये बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है तो कहीं कुल फिस का 50 प्रतिशत फिस जमा करा लिया जाता है। ऐसी शिकायतों पर कई बार कार्यवाही भी होती रही है। लेकिन बलरामपुर जिला अंतर्गत एक निजि विद्यालय ऐसा भी है जिससे शिक्षा विभाग खौफ़ खाता है शायद यहीं कारण है कि इस विद्यालय द्वारा आरटीई के तहत् प्रवेश लिये बच्चों से स्कूल के शुल्क की वसुली की जा रही है और बच्चों का प्रवेश तक निरस्त किया जा रहा है, लेकिन इसके बावजुद विद्यालय पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। ऐसा किसी एक व्यक्ति के बच्चे से नहीं बल्कि कई बच्चों के साथ हो रहा है, जिसकी शिकायत अभिभावकों ने विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी से लेकर, जिला शिक्षा अधिकारी, कलेक्टर से लेकर कमीश्नर एवं मुख्यमंत्री से लेकर शिक्षा मंत्री एवं अन्य लोगों को की है, लेकिन शायद स्कूल संचालक इतने राजनीतिक पहुंच का व्यक्ति है कि उस पर कार्यवाही करने से सभी बच रहे हैं……आईये सुनिये अभिावक पुरे मामले पर क्या कह रहे हैं……
यह पुरा मामला है बलरामपुर जिला अंतर्गत रामानुजगंज के सांई बाबा पब्लिक स्कूल का, इस विद्यालय द्वारा आरटीई के तहत् विद्यालय में प्रवेशित छात्र-छात्राओं से विद्यालय शुल्क की वसुली की जा रही है, शुल्क नहीं देने पर बच्चों का प्रवेश विद्यालय से निरस्त किया जा रहा है, ऐसा आरोप अभिभावक स्वयं ही लगा रहे हैं, इतना ही नहीं बच्चें भी बता रहे हैं कि स्कूल में शिक्षकों के द्वारा कहा जाता है कि यदि विद्यालय का शुल्क नहीं लाये तो परीक्षा का प्रवेश पत्र नहीं मिलेगा और परीक्षा में सम्मिलित नहीं किया जायेगा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिरकार शिक्षा विभाग बलरामपुर क्या कर रहा है, अभिभावकों की शिकायत के बावजुद कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है, फिस नहीं देने पर शिक्षा के अधिकार से कोई विद्यालय कैसे बच्चों को वंचित कर सकता है, यह एक गंभीर सवाल है, जिसकी शिकायत जिला स्तर के सभी कार्यालय तक हुई है, लेकिन शायद यहां बच्चों के शिक्षा के अधिकार को लेकर कोई सजग नज़र नहीं आ रहा है।
वहीं एक अन्य अभिभावक अजय सोनी कहते हैं कि उनके भी बच्चें को आरटीई के तहत् सांई बाबा पब्लिक स्कूल रामानुजगंज में प्रवेश मिला था, किन्तु विद्यालय में बच्चों से शुल्क लिया जाता है, जब से शुल्क देना बंद किया बच्चों का प्रवेश ही विद्यालय ने निरस्त कर दिया है। ऐसे एक नहीं कई मामलों के बाद भी क्यों जिला प्रशासन एवं शिक्षा विभाग कुम्भकर्णी निंद में सोया है अथवा कौन ऐसा राजनीतिक रसुख रखने वाला स्कूल संचालक है, जिस पर कार्यवाही से शिक्षा विभाग के हाथ-पांव फुल रहे हैं, समझ से परे है।
शिक्षा के अधिकार के तहत् यह नियम है कि आरटीई के तहत् प्राईवेट विद्यालयों में अध्ययनरत बच्चों से कोई शुल्क नहीं लिया जाना है, इसके बावजुद शुल्क की वसुली जारी है, इन सबके बीच शिक्षा का अधिकार यह भी कहता है कि यदि कोई बच्चा शुल्क देकर भी विद्यालय में पढ़ता है और उसका अभिभावक समय पर शुल्क नहीं दे पा रहा है तो स्कूल प्रबंधन बच्चे पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं बनायेगा, बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं करेगा, किन्तु यहां तो शिक्षा के अधिकार कानून का खुला उल्लंघन हो रहा है, इसके बावजुद शिक्षा विभाग बलरामपुर हाथ पर हाथ धरे बैठा है, बल्कि उल्टे अभिभावक को ही विभाग के किसी कर्मचारी ने कह दिया कि जो करना है कर लो तुमसे फिस की वसुली सही हो रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे संवेदनहिन व्यक्तियों को शिक्षा विभाग में रखा क्यों गया है जो शिकायतकर्ता की शिकायत पर जांच करना छोड़ उन्हें ही धमकी दे रहे हैं।
वहीं जिला शिक्षा अधिकारी बलरामपुर का कहना है कि मिडिया के माध्यम से ही मेरे संज्ञान में ही यह बात आयी है मैं इसकी जांच करवाता हूं। लेकिन अभिभावकों ने आवेदन दिखाया कि वे जिला शिक्षाअधिकारी कार्यालय से लेकर विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी कार्यालय तक शिकायत कर रहे हैं लेकिन कोई सुन नहीं रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिला शिक्षाअधिकारी के पास अभिभावकों द्वारा किया गया शिकायत कहां गायब हो गया, क्या वाकई जिला शिक्षा अधिकारी कोई एक्शन लेंगे, क्या जिन बच्चों का प्रवेश निरस्त किया गया है, उन्हें प्रवेश दिलायेंगे, क्या कार्यवाही शिक्षा विभाग करेगा यह तो समय ही बतायेगा या फिर अब भी इतनी शिकायतों के बाद भी कुम्भकर्णी निंद में सोये रहेंगे।