जशपुर/सन्ना:- जशपुर जिले के बगीचा जनपद पंचायत आये दिन नये नये कारनामे को लेकर सुर्खियों में ही रहती है।कभी लाखों का भ्रष्टाचार को लेकर तो कभी नाबालिक बच्चों के नाम पर मनरेगा में फर्जी हाजरी भरने को लेकर,तो कभी फर्जी और मृत व्यक्तियों के नाम पर राशि आहरण करने को लेकर वहीं अब कुछ ऐसा ही एक मामला बगीचा ब्लाक के सुदूर अंचल सन्ना क्षेत्र से निकल कर आई है।जहां असहाय गरीब विलोपित होती जिन्हें संविधान में विशेष संरक्षित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है जो पहाड़ों पर रह कर अपना गुजर बसर करते हैं जिन्हें लोग पहाड़ी कोरवा के नाम पर जानते हैं ऐसे तो इन्हें राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी कहा जाता है परन्तु ऐसे लोगों से पहले मनरेगा के कार्यों में मजदूरी कराई गई और अब महीनों बीतने के बाद भी उन मजदूरों को मजदूरी भुगतान नही किया गया है।
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हम बात कर रहे हैं बगीचा ब्लाक के सन्ना ग्राम पंचायत के सबसे पिछड़ा इलाका बलादरपाठ की जहां मनरेगा के तहत डूमरटोली से मंगरु घर तक मिट्टी मुरम का सड़क निर्माण कार्य ग्राम पंचायत एजेंसी के द्वारा कराया गया है।जिस कार्य में वहीं के पहाड़ी कोरवा भाइयों से मजदूरी कराया गया है।परन्तु उन मजदूरों के द्वारा की गई मजदूरी का भुगतान महीनों से मिल नही पाया है और पहाड़ी कोरवा अपनी की गई मजदूरी की राशि के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं।वहां मौजूद कुछ पहाड़ी कोरवा भाइयों से जब हमने बात किया तो उन्होंने बताया कि किसी के द्वारा 60 दिन तो किसी के द्वारा 90 दिन तो किसी के द्वारा 100 दिन तक मनरेगा के कार्य मे मजदूरी की गई है परन्तु किसी किसी को मात्र एक हप्ते की राशि बैंक खाते में डाल दी गई है और बाकी राशि के लिए हम परेशान हैं।मजदूर जयनाथ कोरवा ने तो यहां तक कह दिया कि पंचायत विभाग के कर्मचार और अधिकारीयों के द्वारा हो ना हो हमारे द्वारा की गई मजदूरी की राशि को हनक द्वारा फर्जी तरीके से निकाल कर खा जाया गया होगा तभी उन्हें महीनों से मजदूरी नही मिल रही है।कहने को तो विलुप्त होती पहाड़ी कोरवा जनजाति को संविधान में विशेष संरक्षित किया गया है और इन्हें राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी कहा जाता है उसके बावजूद इन्हें मजदूरी भुगतान के लिये तरसना पड़ रहा है जो काफी चिंता का विषय है।
आपको यह भी बता दें कि पहाड़ी कोरवा जो कि पहाड़ो पर रहना पसंद करते हैं और वहीं से अपना गुजर बसर करते हैं।जो कि मजदूरी करके तो जंगल की सड़ी गली लकड़ी बेच कर अपना जीवन यापन करते हैं।सरकार के द्वारा इनके उत्थान के लिए कई तरह के योजनाएं चलाई जा रही है यहां तक कि इनके लिए अलग से कोरवा बिरहोर प्राधिकरण बनाया गया है जिसमें इनके उत्थान इनमें जागरूकता लाने प्रयास किया जा रहा है। उसके बावजूद इस तरह के कृत्य से सरकार की मंशा धरि की धरी रह जायेगी औऱ हजारों लाखों करोड़ों रुपये का बन्दरबांट हो जायेगा।
बहरहाल अब देखना यह होगा की सैकड़ों पहाड़ी कोरवा मजदूरों के मजदूरी भुगतान में किये गये अनियमितता को लेकर सरकार कब तक जांच कराती है और कब तक पहाड़ी कोरवाओं को उनका हक मिल पाता है..?