Chhattisgarh Elephant News :- छत्तीसगढ़ के घने जंगलों के बीच में एक महत्वपूर्ण पहल की जा रही है जिसका मकसद हाथियों और जंगल के किनारों पर बसी इंसानी बस्तियों की रक्षा करना है। इस अनोखी पहल में स्थानीय समुदाय के सदस्य शामिल हो रहे हैं जिन्हें ‘हाथी मित्र’ कहा जाता है।
ये हाथी मित्र दिन-रात जागकर हाथियों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और अगर कोई हाथी गांव के पास आता है तो लोगों को चेतावनी देते हैं।
उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में रहने वाले जितेंद्र कुंजाम एक हाथी मित्र हैं। पिछले दो महीनों से हाथी जंगल के अंदर ही रह रहे हैं और जड़, बांस और पत्तियां खा रहे हैं। हाल ही में जंगल की सैर के दौरान जितेंद्र और उनके साथी दूर से हाथियों को देख पाए जो दोपहर की धूप में आराम कर रहे थे।
पहले जंगल में आग पर नजर रखने का काम करने वाले नरेंद्र मंडावी बताते हैं, ‘इस इलाके में आमतौर पर हाथी नहीं पाए जाते। लेकिन 2019-20 में ओडिशा से 20-30 हाथियों का एक झुंड हमारे जंगलों में आ गया। तब से हम उनकी गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं।’
वरुण कुमार जैन टाइगर रिजर्व के उप-निदेशक हैं। वह बताते हैं, ‘ओडिशा के जंगलों में हाथियों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई है, इसलिए वे छत्तीसगढ़ और झारखंड की तरफ आ रहे हैं। इससे इंसान और हाथी आपस में लड़ पड़ते हैं। लोग हाथियों से डरकर उन पर हमला कर देते हैं, जिससे हाथी गुस्से में आ जाते हैं। हाथी मित्र कार्यक्रम 2021 में शुरू हुआ था और इसने ऐसे झगड़ों को रोकने में अहम भूमिका निभाई है।’ वह यह भी कहते हैं, रिजर्व करीब 200 हाथियों को रहने की जगह दे सकता है।
हाथी मित्र धेलुराम साहू बताते हैं, ‘हमने हाथियों के बारे में बहुत कुछ सीखा है। हमें पता चला है कि चलने से पहले हाथी जमीन पर अपना पैर रगड़ते हैं, सूंड उठाते हैं और अपने कान हिलाते हैं। साथ ही, हाथी आमतौर पर आगे की तरफ ही चलते हैं। इसीलिए हम हमेशा हाथियों के झुंड के पीछे ही रहते हैं।’ वह आगे कहते हैं कि अगर हम बहुत नजदीक होते हैं तो हाथी हमें चेतावनी देने के लिए अपनी सूंड से हवा में धूल उड़ाते हैं।
रिजर्व के अरसी-कन्हार सेक्शन के रेंजर देवदत्त ताराम बताते हैं, ‘हाथी ट्रैकिंग एक मुश्किल काम है। दिन में जब हाथी आमतौर पर आराम करते हैं, तो मित्र उन्हें पैदल ट्रैक करते हैं, जबकि रात में, जब हाथी भोजन के लिए इधर-उधर घूमते हैं, तो मित्र वन विभाग की गश्ती वैन के साथ जाते हैं।’
पहले हाथी मित्र गांव वालों को हाथियों के खतरे के बारे में परंपरागत तरीके से आवाज लगाकर चेतावनी देते थे। लेकिन 2023 की शुरुआत में, छत्तीसगढ़ वन विभाग ने राज्य में ‘छत्तीसगढ़ एलिफेंट एंड अलर्ट’ मोबाइल ऐप्लिकेशन शुरू किया। अब हाथी मित्र ऐप पर हाथियों के झुंड की लोकेशन अपडेट करते हैं। ऐप खुद ही 20 किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों की पहचान कर लेता है और वहां के रहने वालों को वॉइस नोट और वॉट्सऐप मैसेज के जरिए मोबाइल फोन पर अलर्ट भेज देता है।
वहीं, टाइगर रिजर्व के उप निदेशक वरुण कुमार जैन का कहना है कि ऐप लागू होने के बाद से झगड़े कम हो गए हैं और इलाके में किसी भी तरह की मानव मौतों की सूचना नहीं मिली है। साथ ही, क्षेत्र में हाथियों की मौजूदगी ने पारिस्थितिकी तंत्र को भी समृद्ध किया है। जैन कहते हैं, ‘हाथियों ने जंगलों में आग लगने के खतरों और अवैध पेड़ कटाई और अतिक्रमण को कम किया है।’
बता दें, सीमाओं से परे उदंती-सीतानादी टाइगर रिजर्व से 1,000 किलोमीटर से भी अधिक दूर कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य में एक और समुदाय-नेतृत्व वाली पहल चल रही है। उदंती-सीतानादी के उलट, उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में कतर्नियाघाट तराई हाथी अभयारण्य और भारत-नेपाल खाता हाथी गलियारे का एक हिस्सा है।
वहीं, इसका नतीजा ये हुआ कि अभयारण्य के अंदर और आसपास के समुदायों ने अपनी मर्जी से वन्यजीव संगठनों की मदद से हाथियों की गतिविधियों पर नजर रखना शुरू कर दिया है। जब हाथियों का झुंड किसी गांव के पास पहुंचता है, तो ‘गज मित्र’ नाम के स्वयंसेवक अस्थायी ऊंचे निगरानी टावरों पर डेरा डालते हैं और गांव के निवासी उन्हें दूर भगाने के लिए पटाखों का उपयोग करते हैं। इस साल फरवरी में गज मित्रों ने नेपाल में अपने समकक्षों के साथ मिलकर सीमा पार हाथियों की गतिविधियों को साझा करने के लिए एक वॉट्सऐप ग्रुप, ‘इंडो नेपाल ह्यूमन एनिमल कॉन्फ्लिक्ट ग्रुप’ शुरू किया। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) इंडिया के प्रोजेक्ट ऑफिसर दाबिर हसन कहते हैं, ‘हाथी दोनों देशों में जानमाल का नुकसान करते हैं। इसका समाधान केवल जंगल में रहने वाले समुदाय के पास है। वॉट्सऐप ग्रुप बनाना इस दिशा में उठाया गया एक कदम है।’ डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने वॉट्सऐप ग्रुप को स्थापित करने में मदद की, जिसमें गज मित्र, वन अधिकारी और नेपाल के समुदाय के सदस्य शामिल हैं।
हालांकि, स्वयंसेवकों की पहचान नेचर एनवायरनमेंट एंड वाइल्डलाइफ सोसाइटी की तरफ से 2020 में किए गए एक आधारभूत सर्वेक्षण के आधार पर की गई है, जिसमें गैर-लाभकारी संस्था ने हाथियों के लिहाज से सबसे ज्यादा जोखिम वाले पांच गांवों की पहचान की है। गैर-लाभकारी संस्था के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिषेक बताते हैं, ‘गांवों में 2018-20 में 12 मौतें और 16 हेक्टेयर में फसल का नुकसान दर्ज किया गया। इसके बाद गांवों में 89 गज मित्रों को प्रशिक्षित किया गया।’ उन्होंने कहा कि 2022 में तराई हाथी अभयारण्य बनने के बाद जोखिम वाले गांवों की संख्या बढ़कर 10 हो गई है। हम वहां गज मित्रों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। स्वयंसेवकों को हाथियों के व्यवहार को समझने में प्रशिक्षित किया जाता है और उन्हें रात में जंगल के किनारे गश्त करने के लिए रिफ्लेक्टर और टॉर्च दिए जाते हैं।
वहीं, इस पहल के पीछे एक कारण यह है कि देश के 33 हाथी अभयारण्यों में से सबसे हालिया, तराई में वन अधिकारियों को अब तक सरकार से कोई धन नहीं मिला है। दूसरा कारण पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में हाथियों की आबादी में इजाफा है। कतर्नियाघाट अभयारण्य में पूर्व उप रेंजर इरफान अहमद कहते हैं, ‘2006 में केवल एक या दो हाथी खाता कॉरिडोर से यहां आते थे। 2010 से इन हाथियों का आना बढ़ गया है और अब इनमें से एक बड़ी संख्या कतर्निया के जंगलों में ही चली गई है।’
दरअसल, उनका कहना है कि इस बदलाव का कारण यह है कि नेपाल ने कॉरिडोर के आसपास गन्ने की खेती बंद कर दी है, जबकि हाल के वर्षों में भारत में इसकी खेती बढ़ गई है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की तरफ से 2023 में जारी ‘एलिफेंट कॉरिडोर्स ऑफ इंडिया’ रिपोर्ट के मुताबिक, 56 हाथी नियमित रूप से कॉरिडोर का इस्तेमाल करते हैं और अन्य 66 हाथी नियमित रूप से वन्यजीव अभयारण्य में घूमते हैं।
फिलहाल, दोनों पहलों की सफलता संरक्षण प्रयासों में समुदायों को शामिल करने की क्षमता पर रोशनी डालती हैं, जो महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत में मानव-हाथी संघर्षों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, देश में 2022-23 में हाथियों के हमलों के कारण 97 मानव मौतें दर्ज की गईं, जो 2018-19 में 52 थीं। पांच वर्षों में, ऐसे संघर्षों ने देश में 389 से अधिक मानव जीवन का दावा किया। यह गज मित्र जैसी पहल अन्य मानव हाथी संघर्ष वाले क्षेत्रों में अपनाई जाती हैं कि तो जानमाल को होने वाले नुकसान में काफी कमी लाई जा सकती है।
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रिपोर्टर- गजाधर पैंकरा, जशपुर