जशपुर जिले में रेड जोन की स्थिति,व गहराते जल संकट को देखते हुए नेशनल इनोवेशन फोरम ने नदियों के सरंक्षण की दिशा में अभियान तेज कर दिया है ,जिससे समय रहते नदियों के उद्गम स्थलों को सरंक्षण मिले एवं नदियों का जलस्तर गर्मियों में भी संतुलित बना रहे ,इस क्रम में मंगलवार को एस पी यादव एवं ए . पैंकरा कन्हर नदी के उद्गम स्थल पहुंचे जहां उन्होंने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से नदी के उद्गम स्थल की सफाई की एवं उद्गम स्थल से लेकर बहाव क्षेत्र में पानी प्रवाहित करने का मार्ग बनाया ,नदी के सरंक्षण को लेकर ग्रामीणों में भी खासा उत्साह देखने को मिला,उन्हें मौके पर उद्गम स्थल के सरंक्षण के लिए शपथ भी दिलाया गया । एस पी यादव ने बताया कि 2019 से लेकर अब तक कन्हर नदी के उद्गम स्थल के सरंक्षण को लेकर अब तक कई बार चरणबद्ध अभियान चलाया गया है ,एवं उद्गम स्थल की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे ।
अप्रैल 2019 में उद्गम स्थल की सुरक्षा के लिए यहाँ कंटीले तार से सुरक्षा घेरा भी लगाया गया है ,एवं उद्गम स्थल से 200 मीटर दूर एक ढोढ़ी का भी निर्माण किया गया है,सफाई एवं सुरक्षा के कारण यहां उद्गम स्थल का वाटर लेवल काफी अच्छा है एवं लोगों को सिंचाई के लिए जलापूर्ति भी हो रही है ,पर्याप्त जल उपलब्ध होने के कारण इस इलाके में अब किसान नाशपाती की फसल भी ऊगा रहे हैं ।
यह नदी जिले की प्रमुख एवं जीवनदायिनी नदी हैं ,पेयजल का प्रमुख स्रोत होने के साथ साथ यह सिंचाई का भी प्रमुख साधन हैं ।
जानिए क्या है कन्हर नदी की विशेषता
कन्हर इलाके की जीवनदायिनी होने के साथ साथ यह छत्तीसगढ़ , उत्तरप्रदेश ,झारखंड एवं मध्यप्रदेश राज्य की सीमा रेखा निर्धारित करती है, जशपुर जिले के मनोरा जनपद के लौमुरहा गांव के 2 छोटे जल कुंडों से निकलकर 115 किमी का सफर मध्यप्रदेश के शहडोल एवं सतना जिले की सीमा पर स्थित सोन नदी में जाकर समाप्त होता है ,दातरम,पेंगन, सिंदूर ,गलफुला इसकी सहायक नदियां हैं। बलरामपुर जिले में इस नदी पर कन्हर प्रोजेक्ट स्थापित है।
चर्मरोग होते हैं दूर
प्राप्त जानकारी के अनुसार
कन्हर के उद्गम की एक रहस्यमयी विशेषता यह भी है कि इस नदी के उद्गम स्थल के पवित्र जल से स्नान करने पर चर्म रोग अनायास ही दूर हो जाते हैं ,क्योंकि इस पानी मे सल्फर एवं आयरन की मात्रा अधिक है,गर्मियों में यहाँ जल काफी अधिक ठंडा रहता है।
अब आगे क्या
पर्यावरण विशेषज्ञ ने बताया कि
नदियों के उद्गम स्थलों को बचाने का कार्य चरणबद्ध चलेगा ,सरंक्षण के लिए पैरामीटर्स एवं कार्ययोजना तैयार की जाएगी ,उद्गम स्थल की सुरक्षा के लिए पौधरोपण भी किया जाएगा , स्थानीय ग्रामीणों को नदी के उद्गम स्थल एवं सुरक्षा के लिए जागरूक किया जाएगा।लगातार नदियों के उद्गम स्थलों के अतिदोहन एवं अतिक्रमण के कारण इन नदियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है ,कुछ समय पूर्व सुख चुके हैं ,एवं कई सूखने के कगार पर हैं ,यदि यही हाल रहा तो आने वाले कुछ ही दिनों में इन नदियों का अस्तित्व भी मिट जाएगा । जल के अतिदोहन को रोककर ,वर्षा जल को संचित कर जल का समुचित सरंक्षण एवं संवर्धन किया जा सकता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के अनुसार यदि हम औसत वर्षा की आधी मात्रा को भी प्रत्येक गांव की 1.12 हेक्टेयर भूमि में एकत्र कर लिया जाए तो जिले में कहीं भी पीने के पानी की समस्या नहीं रहेगी।