Chhattisgarh News/रायपुर : छत्तीसगढ़ में वन और सदियों से निवासरत आदिवासी राज्य की विशेष पहचान रहे हैं। प्रदेश के लगभग आधे भू-भाग में जंगल है, जहां आदिवासी निवासरत हैं।
बता दें, इन आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के लिए छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार लगातार प्रयास कर रही है। चूंकि ये आदिवासी अपने आजीविका के लिए जंगलों पर ही निर्भर रहते हैं। आदिवासी समुदाय वनों से तेंदूपत्ता सहित अन्य वनोपज इकट्ठा करके अपनी आजिविका चलाते हैं। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद आदिवासी इलाकों में विकास की अलग बयार चल पड़ी है। एक ओर जहां तेंदूपत्ता की कीमत बढ़ाकर साय सरकार ने जहां आदिवासियों को तोहफा दिया है तो वहीं दूसरी ओर अब प्रदेश में एक बार फिर चरण पादुका योजना शुरू की जाएगी।
वहीं, छत्तीसगढ़ में पूर्व की रमन सरकार ने तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों के लिए चरण पादुका योजना शुरू की थी। इसके तहत तेंदूपत्ता संग्रहण करने वाले ग्रामीणों को चरण पादुका दी जाती थी। लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद इस योजना को बंद कर दिया गया था। बस्तर सहित अन्य इलाकों के आदिवासी मांग को अनसुना कर दिया। आदिवासियों के विकास के लिए प्रतिबद्ध साय सरकार ने इसे फिर से शुरू करने का फैसला लिया है। साय सरकार के गठन होने के बाद इस योजना को फिर से शुरू करने की न केवल घोषणा हुई, बल्कि इसके लिए बजट में प्रावधान किया गया।
दरअसल, 5 साल से बंद पड़ी चरण पादुका योजना के लिए साय सरकार ने अपनी पहली बजट में 35 करोड़ का प्रावधान किया है। इस योजना के दोबारा शुरू होने के बाद प्रदेश के 14 लाख परिवारों को इसका लाभ मिलेगा। इस योजना के फिर से शुरू हो जाने से प्रदेश के तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों में खुशी की लहर हैं।
तेंदूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक दर में भी बढ़ोतरी
फिलहाल, तेंदूपत्ता वनवासियों की आजीविका का मजबूत स्रोत है। साय सरकार ने इसकी राशि भी बढ़ाई है। सरकार ने तेंदूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक दर 4000 रुपए प्रति मानक बोरा से 5500 रुपए प्रति मानक बोरा किया है। चालू तेंदूपत्ता सीजन में ही 12 लाख 50 हजार से अधिक संग्राहकों को इसका लाभ मिला है। प्रदेश में तेंदूपत्ता का संग्रहण करने वाले को अब पिछली सरकार की अपेक्षा ज्यादा का मुनाफा हो रहा है। यही वजह है कि प्रदेश के आदिवासी अब खुश नजर आ रहे हैं।
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रिपोर्टर- गजाधर पैंकरा, जशपुर