क्षेत्र में बाल विकास विभाग मैं बैठे अधिकारी अपनी सारी कर्तव्यों को भूल कर बस कुर्सी तोड़ने में लगे हुए हैं हम आज आपको बारी बारी से बताएंगे की कहां-कहां आंगनबाड़ी केंद्रों में लगातार लापरवाही बरती जा रही है और मस्तूरी मुख्यालय में बैठे परियोजना अधिकारी को इसकी भनक तक शायद नहीं होती शायद यही वजह है कि कई आंगनबाड़ी केंद्र ऐसे हैं जहां मंगलवार को छोड़कर बाकी सभी दिनों में ताला लटका रहता है परीयोजना अधिकारी की लापरवाही ने पूरे सिस्टम को भ्रष्ट कर रख दिया है हम आज यानी गुरुवार को मस्तूरी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत सोन के आंगनबाड़ी केंद्र में पहुंचे समय तकरीबन 11 बजे जहां आंगनबाड़ी केंद्र में ना कार्यकर्ता थी और ना ही सहायिका थी आंगनबाड़ी केंद्र के मेन गेट पर ताला लटका हुआ मिला हमने आसपास बैठे लोगों से पूछताछ भी की तब गांव वाले बताते हैं कि मंगलवार को आंगनबाड़ी केंद्र लगातार खुलता है और बाकी हफ्ते में कुछ दिन मैडम की अगर इच्छा हो तो स्कूल खुल जाती है इस गांव के बाद हम सोनसरी के आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक 2 में पहुंचे जहां सहायिका बच्चों को खाना खिलाते नजर आई जब हमने उनसे पूछा कि कार्यकर्ता कहां है तब सहायिका बताती है कि कार्यकर्ता का नाम रेखा है और वह अभी घर से नहीं आई हमने पूछा कि क्या वह रोज ऐसी करती है तब वह बताती है कि कभी-कभी टाइम पर आ जाती है और कभी-कभी ऐसी 11 से 12 बजे तक आती है इसके बाद हम बिनौरी डी पहुचे जहां दोनों बच्चों को खाना खिलाते मिले भरारी के केंद्र क्रमांक एक में सहायिका तो बच्चों को खाना खिलाते जरूर उपस्थित थी पर कार्यकर्ता यहां से भी नदारद मिली इस बात पर हम ने सहायिका से पूछा कि कार्यकर्ता कहां है तो उन्होंने बताया कि कार्यकर्ता का नाम मंजुला बाई वैष्णव है जो स्कूल आई थी और कुछ काम आने के कारण अभी घर गई है उनका मोबाइल अभी भी यही चार्जिंग हो रहा है खिड़की पर रखा हुआ है देख लीजिए यह हाल है हमारे मस्तूरी क्षेत्र के आंगनवाड़ी केंद्रों का जहां नीचे बेल्ट में कुछ को छोड़कर अधिकांश केंद्र कभी टाईम पर ना खुल रहा है ना बंद हो रहा है ना ही इस क्षेत्र के सुपर वाईजर अपनी मिली जिम्मेदारी को निभा पा रही है . ।
और शायद यही वज़ह है कि कार्यकर्ता से लेकर सहायिका सभी लगातार लापरवाही बरत रहे है और ताज्जुब की बात तो ये है कि परियोजना अधिकारी भी इनके साथ मिल कर सिस्टम को दुरुस्त करने के बजाय लापरवाही बरत रहे अब इस विभाग का भगवान ही मालिक है क्योंकि अधिकारी तो सिस्टम सुधारने के मूड में नजर नहीं आ रहे हैं अगर अधिकारी क्षेत्र की लगातार दौरा करते सुपर वाईजर अपने अपने केंद्रों में लगातार पहुंच कर मोनिटर करते तो शायद ऐसा नहीं होता पर अधिकारियों की कमजोरी को केंद्रों के सभी कार्यकर्ता समझ चुके है शायद यही वज़ह है कि जब मन लगता है खोलते है जब मन लगता बंद कर चले जाते है बहरहाल अब देखना होगा कि परियोजना अधिकारी की गहरी निद्रा कब खुलती है और कब सिस्टम दुरुस्त होता है आपको बताते चलें कि ये वो अधिकारी है जो भर्ती को भी सालो से लटका कर रखे हुए है जिसके वज़ह से गरीब लोगों को समस्या हो रही है अब इसके पीछे इनकी क्या मनसा है ये तो ये अधिकारी ही बता सकते है
वहीं इस मामले मे उच्च अधिकारियों से बात की गई तो वो इसकी जानकारी नहीं होने की बात कहते है साथ ही अगर ऐसा है तो परियोजना अधिकारी को बोल कर सिस्टम को दुरुस्त करने की बात कह रहे है