दंतेवाड़ा :- बस्तर के आदिवासी समाज अपनी अनोखी परंपरा, रीति-रिवाज को आज भी निभा रहा है. गांव में किसी की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के बाद उसके नाम का पत्थर गाड़ा जाता है। और अब किसी इंसान की मृत्यु हो जाने के पश्चात लोग कफन के रूप में कपड़े से ढकते हैं। उसे नहीं करके उसके बदले पैसा देने की रीति रिवाज को अपनाया है।
जानकारी के मुताबिक, बताया जाता है कि आज के आधुनिक जमाने में इंसानों की मृत्यु के पश्चात कफन कपड़े न ढकने तथा उसके बदले में पैसा देने की नई रीति रिवाज बस्तर के आदिवासियों में अपनाए जाने लगी है। उनका कहना है कि कफन कपड़े या तो दफना दी जाएगी या जला दिया जाएगा। लेकिन अगर कफन के बदले, पैसे अगर दिया जाए तो मृतक परिवार के लिए वही पैसे कुछ विशेष कार्य(दशकर्म) में काम आ सकते हैं।
बता दें कि, आगे उनका कहना है कफन कपड़े कम से कम 40-50 रुपए के आते होंगे। उसे बेवजह या तो शव के साथ दफन कर दिया जाता है या शव के साथ जला दिया जाता है। वही कफन कपड़े न देकर इकट्ठे हुए लोग कफन कपड़े के बदले पैसा दे दें तो मृतक परिवार का कुछ ना कुछ काम जरूर निपट सकता है।
आगे बस्तर के आदिवासीयों कहना हैं इस ‘कफन के बदले पैसे’ वाली रीति रिवाज को हमारे ही यहां नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में, हर समाज में इस अनोखी पहल को अपनाना चाहिए। ताकि जो कफन कपड़ा बेकार में ही नष्ट हो जाते हैं वहीं पैसे इंसान के कुछ काम आ सके। इसीलिए हम लोगों ने यह ‘कफन के बदले पैसे’ की पहल को शुरू किये हैं।
फिलहाल, छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपनी अनोखा परंपरा, आदिवासी रीति रिवाज, कला संस्कृति के लिए देश-विदेश में पहचाना जाता है। बस्तर के आदिवासियों में जो परंपरा देखने को मिलती है वह शायद ही किसी अन्य जगहों पर देखने को नहीं मिलेगी।आदिवासी अपनी परंपरा को अपना मुख्य धरोहर मानते हैं। यही वजह है कि आदिवासियों में सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है। आदिवासी ग्रामीण अपनी परंपराओं को बखूबी निभाते आ रहे हैं।
पुरखों की निशानी को पत्थर के रूप में संजोने की परंपरा
बता दें कि, आदिवासी समाज अपने पुरखों की निशानी को पत्थर के रूप में संजोए रखता है। ग्राम गमावाड़ा में एक संग्रहालय भी बनाया गया है। आदिवासी समाज के ग्रामीण गांव में किसी भी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर अंतिम संस्कार के पश्चात इसी संग्रहालय में उसके नाम का पत्थर गाढ़ देते हैं। यह अनोखी परंपरा बस्तर में ही देखी जा सकती है।
पत्थर की पूजा कर लेते हैं, आशीर्वाद
प्राप्त जानकारी के अनुसार, गांव में अगर किसी की मृत्यु होती है तो इसी संग्रहालय में अंतिम संस्कार के पश्चात उसके नाम का पत्थर गड़ा जाता है यह परंपरा पुरुखों से चली आ रही है। अपने पुरखों को याद कर उनके नाम के पत्थर के सामने पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया जाता है।
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रिपोर्टर- गजाधर पैंकरा, जशपुर