छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में लगातार हाथियों की दहशत बनी हुई है। एक बार फिर हाथियों की आतंक बढ़ गई है। तपकरा और कांसाबेल वन परिक्षेत्र में हाथियों ने फसल को नुकसान पहुंचाया है। जानकारी के अनुसार बीते दिनों में कांसाबेल वन परिक्षेत्र के छेराघोघरा और कोडलिया में हाथियों ने फसल को नुकसान पहुंचाया है।
वहीं तपकरा वन परिक्षेत्र में भी 6 हाथी,अलग-अलग स्थानों पर डेरा जमाएं हुए हैं। इनमें खारीबहार और सर्करा में 4 हाथी,सिंगीबहार में 1 और जमुना में 1 हाथी विचरण कर रहा है। हाथियों ने कांसाबेल में किसानों की खड़ी फसल को नुकसान पहुंचाया है। अपनी जान और फसल को बचाने के लिए ग्रामीण इन दिनों कड़ाके की सर्दी में रतजगा करने के लिए मजबूर हैं।
ज्ञात हो कि, जशपुर जिले का तपकरा वन परिक्षेत्र छत्तीसगढ़ का सबसे अधिक हाथी प्रभावित क्षेत्र में शामिल है। छत्तीसगढ़, ओड़िसा और झारखंड की अन्तरराज्यीय सीमा पर स्थित इस रेंज में साल के 12 महीने हाथी डेरा जमाए रहते हैं। हाथियों के बढ़ती हुई आतंक से इस क्षेत्र में जन और सम्पत्ति हानि का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।
फिलहाल, हाथियों के तांडव से जिले के आधे ब्लाक प्रभावित क्षेत्र में शामिल हो गए है। इनमें फरसाबहार के साथ पत्थलगांव, कुनकुरी, दुलदुला शामिल है। हाथियों को काबू में रखने के लिए किए गए सभी सरकारी उपाय करोड़ो रूपये खर्च करने के बाद भी बेकार साबित हुए हैं। थकहार कर वन विभाग अब हाथियों को साथी बनाने के लिए जागरूकता अभियान चला रहा है।
खतरनाक होता है अकेला हाथी
बता दें कि, दल से अलग हुआ हाथी आक्रामक, खतरनाक होता है। विभाग में इसे लोनर एलिफेंट के नाम से जाना जाता है। जानकारों के अनुसार दल में नर हाथी के व्यस्क होने पर,उसे अलग कर दिया जाता है,ताकि वह अपने ही दल की मादा हाथी से सम्बन्ध न बना सके। दल से अलग होने के कारण इस हाथी का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। इस कारण वह अपने सामने आने वाले मानव और सम्पत्ति पर तत्काल आक्रमण कर देता है।
रिपोर्टर- गजाधर पैंकरा, जशपुर