जशपुरनगर :- छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में शहर के नजदीक स्थित घोलेंग में एक स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं हथकरघा से ऊनी शाल बनाते हुए देख कर लोग आश्चर्य चकित रह जाते हैं। इन ग्रामीण महिलाएं जिस दक्षता से हथकरघा में बुनाई का काम कर रही है,उसे देख कर कोई भी इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकता कि इन हुनरमंद महिलाओं ने बिना किसी प्रशिक्षण के जशपुर के इस शाल की ख्याति जिले की सीमा से निकल कर इंग्लैंड,अमेरिका जैसे देशों तक पहुंचा चुकी है।
जानकारी के मुताबिक, जागृति महिला मंडल से जुड़ी इन महिलाओं के शाल बुनने की शुरूआत करने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। जेराल्ड मिंज बताते है कि तकरीबन 10 साल पहले बस्तर से जशपुर आया एक परिवार हथकरघा से शाल बुनने का काम शुरू किया था। इस परिवार की महिलाओं को शाल बिनता हुआ देखकर स्थानीय महिलाओं की दिलचस्पी बढ़ी। वे इस परिवार के साथ मिलकर हथकरघा चलाना इसमें धागों को फंसाने जैसे दुष्कर कार्य को समझने की कोशिश कर रही थी। इसी दौरान यह परिवार वापस बस्तर लौट गया।
दरअसल, अपने आधी जानकारी के बूते शाल बिनने का काम एक बार तो इन महिलाओं को असंभव लगने लगा। लेकिन हिम्मत ना हार कर सबने मिल कर प्रयास किया तो एक बार हथकरघा का पहिया जो घूमा दस साल से लगातार घूमता जा रहा है।
विदेशों में बढ़ रही मांग
बता दें कि, जशपुरिया हथकरघा ऊनी शाल की ख्याति जिला, प्रदेश और देश की सीमा से आगे निकल कर विदेशों तक जा पहुंचा है। दरअसल हर साल क्रिसमस के त्यौहार के लिए घोलेंग में यहां से विदेश गए लोग अपने घर लौटते हैं। इस दौरान आकर्षक डिजाइन और रंगों से सजा हथकरघा ऊनी शाल उन्हें खूब भाता है।
फिलहाल, मशीनी युग में इस शाल की बारीकी से की गई कारीगिरी देख कर लोगों को एक बार यकीन ही नहीं होता कि बिना मशीन के भी इस तरह का काम किया जा सकता है। विदेशों में इन ऊनी शाल की मांग साल दर साल बढ़ती जा रही है। लेकिन बाजार की जानकारी का अभाव इन महिलाओं के आगे बढ़ने के आड़े आ रहा है।
रिपोर्टर- गजाधर पैंकरा, जशपुर