Chhattisgarh News Desk/रायपुर :- भारत विविधताओं का देश है, जहां हजारों रीति-रिवाज हैं, जो कुछ किलोमीटर पर बदल भी जाते हैं. यहां तक की लोगों की शादी के तौर-तरीके भी बदल जाते हैं. ऐसी ही एक प्रथा के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जो बहुत प्रचलित है.क्
हालांकि, ये केवल एक समुदाय की प्रथा है. हालांकि समय के साथ प्रथाएं बदलती रहती हैं. लेकिन अभी भी कई ऐसे समुदाय हैं, जो अपनी हजारों वर्ष पुरानी प्रथा को चलाते रहते हैं. इस प्रथा को घोटुल कहा जाता है. यह आदिवासी समुदाय गोड़ जनजाति की एक सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा है.
वहीं, अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि घोटुल एक तरह का युवागृह है, जहां कुंवारे लड़के-लड़कियां एक साथ रहते हैं और जीवन यापन के बारे में सीखते हैं. घोटुल में रहने वाले लड़के-लड़कियों को स्थानीय बोली में चेलिक-मोटियारी कहा जाता है. उन्हें सामाजिक जीवन के बारे में बताया जाता है. इस दौरान लड़के-लड़कियों को नाचने-गाने जैसे कई तरह की एक्टिविटी में हिस्सा लेने का मौका मिलता है. घोटुल में रहने वाले युवाओं को एक-दूसरे की भावनाओं को समझने और शारीरिक जरूरतों को पूरा करने का तरीका भी बताया जाता है.
दरअसल, घोटुल मिट्टी-लकड़ी आदि से बनी एक बड़ी सी कुटिया को कहते हैं. ये मिट्टी की झोपड़ी होती है. यहां बुजुर्ग लोगों की देखरेख में लड़के-लड़कियों को रखा जाता है. कई इलाकों में इस प्रथा को निभाने का तरीका अलग है. कहीं लड़के-लड़कियां घोटुल में ही सोते हैं तो कुछ दिनभर साथ रहने के बाद अपने-अपने घरों में सोने चले जाते हैं.
फिलहाल, शाम के वक्त लड़के-लड़कियां एकत्रित होते हैं और वे ग्रुप में गाते हुए घोटुल तक जाते हैं. इस दौरान शादीशुदा मर्द ढोल बजाते हैं और कुंवारे लड़के-लड़कियां डांस करते हैं. एक दो गीत के बाद ये लोग आपस में बातचीत करते हैं और गांव की समस्याओं पर चर्चा करते हैं. यही वो पल होता है, जब एक-दूसरे को प्रति आकर्षित होते हैं. आप विदेशी भाषा में घोटुल को प्रॉम नाइट कह सकते हैं.
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रिपोर्टर- गजाधर पैंकरा, जशपुर