शिक्षा से ही मोक्ष और परमात्मा को पा सकता है – सनातन धर्म
स्वतंत्र लेख:-
सन्ना मां खुडिया रानी के हरारुपी आंचल से आच्छादित यह सन्ना क्षेत्र जहां सरहुल के गीत, यादवों का राऊत नाच , जीतीया पर्व का आनंद है। वहीं यह जनजाति बहुल क्षेत्र शिक्षा के क्षेत्र में शिशु की तरह लड़खड़ाकर चलना सीख रहा है। 4 साल पूर्व इस क्षेत्र में हर विद्यालय में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त थी किन्तु वर्तमान काल में पूर्व स्थानांतरण और वर्तमान स्थानांतरण से हर विद्यालय शिक्षकों की तंगी से झेल रहा है। और इस क्षेत्र को किसी चाणक्य, अम्बेडकर, राजाराय मोहन राय की भांति महापुरुष की आवश्यकता है जो केवल अपने लिए नहीं होंगे बल्कि समाज के लिए सोंचे। महाविद्यालय स्थापना से पूर्व मां खुडियारानी के ह्रदय स्थल सन्ना में उच्च शिक्षा का सर्वथा अभाव था यहां के युवा उच्च शिक्षा के लिए जशपुर जाते थे,
जिसके परिवार में आर्थिक स्थिति खराब रहता उसकी पढाई मध्य में रुक जाती बालिकाएं तो केवल 40% ही पढ़ पाती थी। किन्तु वर्तमान विधायक जशपुर विनय भगत के प्रयास से सन्ना में महाविद्यालय खुला और इस क्षेत्र के लोगों ने उच्च शिक्षा हेतू अपनी पढ़ाई को नियमित किये। वर्तमान में मनोरा से (जशपुर के महाविद्यालय में सीट भरने के कारण ), एकम्बा, चम्पा ,पंड्रापाठ, मह नई, उकई, बुर्जू डीह, के बालक बालिका इस महाविद्यालय सन्ना में अध्ययनरत हैं। किन्तु सबसे बड़ी समस्या है कि इन बच्चों को महाविद्यालय की परीक्षा देने 40 किलोमीटर दुर बगीचा के महाविद्यालय में जाना पड़ रहा है।
अर्थात परीक्षा के लिए इन्हें अपने घरों से लगभग 80 से 100 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है जिससे गरीब बच्चों और बालिकाओं का पढ़ाई पुनः: अधर में ना लटक जाये, क्योंकि अध्ययन जारी रखने के लिए सन्ना में कमरा और परीक्षा में बगीचा में कमरा लेके रहना पड़ रहा है जो कि आर्थिक बोझ इन पर ज्यादा आ रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ जनप्रतिनिधियों को भी जल्द से जल्द इन गरीब बच्चों के बारे में सोचकर परीक्षा के लिए सन्ना का महाविद्यालय को ही परीक्षा केंद्र बनाए।
परन्तु बात यह भी है कि इस अपने बारे में केवल सोंचे वाले राजनीतिक दल के किस नेता या अधिकारियों से यह बच्चे आशा की नजरों देखें, कौन इन नौनिहाल को विद्यालय में पर्याप्त शिक्षक देकर ऊंगली पकड़कर विद्यालय की चौखट पर ले जाते।