जंगल जल और जमीन इस पर अपना अधिकार जताने वालों की कभी नहीं है। किन्तु आज के समय में विचार करना बहुत जरूरी है। इस पर तनिक भी विचार किया जाय तो प्रकृति रुप से स्पष्ट होता है कि इसपर अधिकार किसका है। किसी भी वस्तु का अधिकार किसी व्यक्ति का तब होता है जब वह उसका निर्माता हो या उस वस्तु का मूल्य वह दे दे।
इस विचार पर पातें है जल जंगल और जमीन पर अधिकार प्रकृति (माता पार्वती) और पुरुष (देवाधिदेव महादेव ) का है। प्रकृति और पुरुष ने जीवों का निर्माण किया और पृथ्वी पर अवतरित कर दिया, और उनके निवास स्थान भी उनको दिया जैसे पानी में पानी के प्राणी(मछली केकड़ा……..), जंगल में जंगल के प्राणी (जंगली जन्तु मोर ,शेर सांप …… ) और कुछ प्राणी को दोनों में निवास करने हेतू, पर मनुष्य को विचारशील बनाकर पृथ्वी पर भेजा निवास अपने मन के अनुसार सुविधा अनुसार बनाए।
पर यहां पर प्रश्न यह नहीं इस पर किसका अधिकार है प्रश्न है इसको बचाया कैसे जाय?
वर्तमान में जंगल क्षेत्र में देखा जाय तो पूर्व (पहले वृक्षों की ऊंचाई 100-150 फीट ) की अपेक्षा वर्तमान में वृक्षों की ऊंचाई मात्र 20-25 फीट ऊंचा है। कारण जंगल से जलाऊ लकड़ी के नाम पर वृक्षों की अंधाधुंध कटाई , बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि से निवास हेतू भयावह दोहन और तो और मानव जिस जंगलों में आर्थिक स्थिति ठीक करता था (चार , तेंदूपत्ता, सालवृक्ष का फूल , पुटू, मशरूम को बेचकर) उसे भी भयावह तरीके से जला रहा है।
जंगलों को जलाने पर वन्यजीव जिसे भगवान उनको निवास दिया है वह भी वनों से भाग रहें हैं या वे विलुप्त की कगार पर हैं। मानव के साथ सरकार भी जंगलों के विनाश में (वन पटा देकर )बराबर का हाथ है। राजनीति दलों को इससे मतलब नहीं उसे तो केवल सत्ता चाहिए। पर मानव को यह समझना चाहिए कि मानव उसकी इस करतुत से प्रकृति आपदा (बाढ़, बरसात कम करके,या भीषण गर्मी बढाकर) हो सकता है और तर्क़ वाली मानव उसे प्रकृति का बदला ना कहें।
वहीं जल की बात करें तो इसका भी वही हाल है जो जंगलों का है, आज से 20 वर्ष पहले बरसात के समय पर खेतों में पानी का स्फुट धारा निकलती थी जो माह जनवरी तक रहता था। पर आजकल यह स्फुटित धारा बरसात में ही निकलता है। शायद पानी का लेवल कम हो रहा हो।
यदि इन समस्या को हम मानव नहीं ध्यान दिये तो मानव प्रजाति समस्या लिए पृथ्वी पर रहेगा। रामकुमार तिवारी
लेखक रामकुमार तिवारी जी की कलम से