रायगढ़। सारंगढ़ विधानसभा क्षेत्र में चुनावी संघर्ष तेज होता जा रहा है। आने वाले दिनों में सस्सरकशी और बढ़ाने की संभावना है। इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला तो नजर आता है। लेकिन बसपा के एक बड़े वोट बैंक को लेकर सारंगढ़ सीट का पेंच फंस सकता है। कांग्रेस अपनी दूसरी पारी खेलने के लिए जहां मतदाताओं को साधने की कोशिश में है। वहीं भाजपा 2018 के चुनाव में मिली पराजय का बदला लेने की रणनीति पर काम करने का दावा कर रही है। दोनों ही राजनीतिक दल बाजी मारने के लिए तरह-तरह के समीकरण बैठाने की जुगत कर रहे। हैं लेकिन बसपा और निर्णय प्रत्याशियों की मौजूदगी से फिलहाल समीकरण फिट नहीं बैठ रहा है। राजनीति के जानकारों की माने तो बीजेपी-कांग्रेस का समीकरण बसपा और निर्दलीय बिगाड़ सकते हैं। सारंगढ़ विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, अविभाजित रायगढ़ जिले की सारंगढ़ सीट पर 2018 के चुनाव कांग्रेस ने 56 हजार की लीड से चुनाव जीता था। भाजपा प्रत्याशी उस चुनाव में करीब 44 हजार वोट पर सिमट गई थी। इस बार सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला बनने के बाद सारंगढ़ सीट के लिए पहला चुनाव है। कांग्रेस सारंगढ़-बिलाईगढ़ नया जिला बनने का पूरा-पूरा श्रेय लेकर चुनाव को अपने पाले में करने की रणनीति पर जुटी है। बताया जाता है कि सारंगढ़ सीट पर हर चुनाव में बदलाव की स्थिति रही है। छत्तीसगढ़ गठन के बाद 2003 के चुनाव में बसपा की कामदा जोलल्हे इस सीट से विधायक बनी तो 2008 के चुनाव में बसपा की कामदा जोल्हे को पराजित कर कांग्रेस की पदमा मनहर को विधायक बनने का मौका मिल गया। लेकिन 2013 के चुनाव में कांग्रेस की पदमा मनहर को पराजय मिली और भाजपा की केरा बाई मनहर ने इस सीट पर जीत दर्ज की। इसी तरह 2018 के चुनाव में भाजपा की केराबाई मनहर को कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा। राजनीति के जानकारों की माने तो सारंगढ़ की यह परंपरा इस बार बरकरार रहेगी या मिथक टूटेगा फिलहाल कुछ भी कह पाना जल्दबाजी होगी। लेकिन कांग्रेस जिला बनने को बड़ा मुद्दा मानकर पूरा समर्थन मिलने का दावा करती नजर आ रही है। जबकि भाजपा का दावा है कि जिले के मुद्दे को लोग उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। जितना कांग्रेस को अंतिम इंकमबेसी से नुकसान है। दोनों ही दल सीधे तौर पर आपसी मुकाबले की बात करते हैं। बसपा और निर्दलीय प्रत्याशियों के हासिये पर चले जाने का दावा कर रहे हैं। लेकिन राजनीति के जानकार इसे दोनों बड़े राजनीतिक दलों की भूल मान रहे हैं। बताया जाता है कि सारंगढ़ सीट बसपा का एक बड़ा वोट बैंक अब भी मौजूद है। हालांकि बसपा के करीब 20 हजार वोट बैंक पर सेंध लगाने भाजपा-कांग्रेस दोनों ही समीकरण बना रहे हैं। तो दूसरी तरफ बसपा और निर्दलीय दोनों ही बड़े राजनीतिक दल का समीकरण बिगडऩे की रणनीति पर काम कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस और भाजपा का पेंच फंस सकता है। राजनीति के जानकारों की माने तो कांग्रेस और भाजपा का परंपरागत वोट लगभग एक बराबर है। हार-जीत का फैसला गैर परंपरागत वोट का रुझान जिस तरफ होगा उसी के हाथों बाजी आ सकती है।
भाजपा की सधी चालू वोट बैंक पर नजर
भाजपा इस चुनाव को बेहद सधी हुई रणनीति से लडऩे का दावा कर रही है। सारंगढ़ सीट पर भाजपा ने चुनाव संचालन की कमान पार्टी के वरिष्ठ नेता गुरूपाल भल्ला को सौंपी है। बताया जाता है कि भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य गुरूपाल भल्ला लगातार सारंगढ़ सीट के चुनाव से जुड़े रहे हैं। साथ ही 2013 के चुनाव में यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रही। इससे पहले 1993 के चुनाव में भाजपा को जीत मिली थी, भाजपा इस चुनाव को नई रणनीति के साथ लड़ रही है। बताया जाता है कि भाजपा का पूरा ध्यान जातिय समीकरण पर है। भाजपा एक ओर जहां ओबीसी वोट बैंक को साधने की रणनीति पर जुटी है। वहीं सतनामी समाज के वोटों के बंटवारे का लाभ मिलने की उम्मीद में है। इस चुनाव में खास बात यह है कि कुल 9 प्रत्याशी में से 8 प्रत्याशी सतनामी समाज से आते हैं, जबकि भाजपा ने गाड़ा चौहान समाज से प्रत्याशी उतारा है। इसका उसे लाभ होने का पूरा अनुमान है।
कांग्रेस की बढ़ी मुश्किलें
कांग्रेस के लिए यह चुनाव बड़ी चुनौती पूर्ण मानी जा रही है बताया जाता है कि कांग्रेस को जहां एंटी इंनकमबेसि का सामना करना पड़ रहा है। वहीं भाजपा के घोषणा पत्र से कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई है। राजनीति के जानकारों की माने तो करीब 56 हजार की लीड को बरकरार रखना जहां कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। हालांकि 5 साल के कार्यकाल को लेकर कांग्रेस जनता के सामने आ रही है। जिला बनने की बड़ी उपलब्धि भी गिना रही है। परंतु मतदाता भाजपा के घोषणा पत्र को इस बार गंभीरता से लेते नजर आ रहे हैं। महिलाओं को 12 हजार सालाना देने का दवा भाजपा के लिए संजीवनी की तरह काम कर रहा है। महिलाएं भाजपा के घोषणा पत्र को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में बेहद उत्साहित हैं। अब आने वाले दिनों में कांग्रेस इसे किस तरह से साधने की रणनीति बनाती है यह देखने वाली बात होगी।