रोहित यादव ( प्रतापपुर ) :- नगर पंचायत प्रतापपुर में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में सांतवे दिन समापन पर गुरूवार को वृंदावन धाम के कथा व्यास प्रदीप कृष्ण जी महाराज ने श्री कृष्ण लीला का संक्षिप्त सार, सुदामा चरित्र व राजा परीक्षित की मोक्ष का वर्णन किया जिसे समस्त भक्तों ने पूरे भक्ति भाव से श्रवण किया। कथा व्यास आचार्य ने बताया कि श्रृंगी ऋषि के श्राप को पूरा करने के लिये तक्षक नामक सांप भेष बदलकर राजा परीक्षित के पास पहुंचकर उन्हें डस लेता है।
जहर के प्रभाव से राजा का शरीर जल जाता है और उनकी मृत्यु हो जाती है लेकिन श्रीमद्भागवत कथा सुनने के प्रभाव दर राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्त होता है। कथा व्यास ने कहा कि कथा के श्रवण करने से जन्म जन्मांतरो कर पापों का नाश होता है ओर विष्णु लोक की प्राप्ति होती है उन्होने कहा कि संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिए,तभी उसका कल्याण सम्भव है।
कथा में अंतिम दिन सुदाम चरित्र की लीला का भावपूर्ण वर्णन किया गया।’अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो दर पे सुदामा गरीब आ गया है’के भजन पर श्रोता भाव विभोर हो उठे। प्रसंग सुनाते हुये कथा व्यास ने कहा कि मित्रता जीवन का आधार है। सुदामा और कृष्ण की मित्रता आज भी प्रासंगिक है।
सुदामा गरीब ब्राहम्ण थे अपने बच्चो का पेट भर सके उतने भी सुदामा के पास पैसे नही थे,पत्नी के बार बार कहने पर वो अपने मित्र कृष्ण के यहां पर गये और बगैर मांगे ही उन्हें वह सभी कुछ मिल गया। जिसकी इच्छा को मन में धारण करते हुए वह गए थे। इसी बात को आगे बढाते हुये कथा व्यास नर कहा कि कृष्ण और सुदामा का प्रेम यानी सच्चा मित्र प्रेम।
इसीलिए आज इतने युगों के बाद भी दुनिया कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को सच्चे मित्र प्रेम के प्रतीक के रूप में याद करती है।आयोजक नगर पंचायत अध्यक्ष कंचन सोनी ने बताया सात दिवसीय भागवत कथा के समापन पर गुरुवार को हवन पूजन के साथ ही विशाल भंडारे का आयोजन किया गया है।
पूर्णाहुति के साथ भागवत कथा का समापन
नगर पंचायत प्रतापपुर के वार्ड क्रमांक 6 में में चल रही भागवत कथा गुरुवार को संपन्न हो गई। कथा के समापन के हवन यज्ञ और भंडारे का आयोजन किया गया। भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहले हवन यज्ञ में आहुति डाली और फिर प्रसाद ग्रहण कर पुण्य कमाया। भागवत कथा का आयोजन नगर पंचायत अध्यक्ष कंचन सोनी परिवार की ओर से करवाया गया था। कथा व्यास प्रदीप कृष्ण जी महाराज ने 7 दिन तक चली कथा में भक्तों को श्रीमद भागवत कथा की महिमा बताई। उन्होंने लोगों से भक्ति मार्ग से जुड़ने और सत्कर्म करने को कहा। राधा किशोरी ने कहा कि हवन-यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है। व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। दुर्गुणों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं। यज्ञ से देवता प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है। श्रीमद भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है। कथावाचक राधा किशोरी ने भंडारे के प्रसाद का भी वर्णन किया। उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन। जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है। मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है। भगवान का लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है। कथा समापन के दिन रविवार को विधिविधान से पूजा करवाई। दोपहर तक हवन और भंडारा कराया गया।