संवावदाता – भुनेश्वर निराला
रायगढ़:- प्रदूषण की मार झेल रहे रायगढ़ में उद्योगों की जवाबदेही शून्य हो चुकी है। प्लांट चलाने के लिए प्रकृति की बलि देने से भी कंपनियां पीछे नहीं हटतीं। संबलपुरी क्षेत्र में दो उद्योग तो घने जंगलों के बीच खड़े हैैं। इन प्लांटों से गंदा पानी भी जंगलों में छोड़ा जाता है। प्लांट तक पहुंचने के लिए सडक़ है ही नहीं। रोड पर कोल डस्ट है जो पानी के साथ बहकर जंगल में चला जाता है। इस वजह से रोड किनारे नए पौधों पनप ही नहीं पा रहे हैं। मामला मां शाकम्भरी स्टील प्लांट संबलपुरी और मां मंगला इस्पात का है।
शाकम्भरी प्लांट रायगढ़ हमीरपुर रोड से करीब एक किमी अंदर घने जंगलों के बीच स्थित है। प्लांट तक जाने के लिए कच्ची सडक़ है जो कोल डस्ट से पटी हुई है। बारिश में यही डस्ट बहकर जंगल में फैल जाती है। प्लांट से निकलने वाले गंदे पानी को भी छोड़ दिया जाता है। प्रदूषण रोकने के लिए ऐसे प्लांटों को सुधारने की जरूरत है। घने जंगल को शाकम्भरी प्लांट के कारण भारी नुकसान हो रहा है। मेन रोड से ही कोल डस्ट दिखने लगता है। बताया जा रहा है कि हाईवे से प्लांट तक की रोड दूसरे की निजी जमीन पर बनाई गई है।
प्लांट अपने लिए कोई अलग रास्ता अब तक नहीं बना सका है। प्लांट के अंदर दूषित डस्ट युक्त धुएं के शोधन के लिए ईएसपी भी ज्यादातर बंद ही रहती है। गंदे पानी को रिसायकल करके प्लांटट एरिया में यूज किया जाना है लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। सामने की ओर श्रमिकों के रहने के लिए छोटे-छोटे कमरे बनाए गए हैं। यहां सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है। बहुत मुश्किल से श्रमिक इन कमरों में रह पाते हैं। प्लांट से निकलने वाले कचरे को भी सामने जंगल के किनारे डंप कर दिया गया है। औद्योगिक कचरे का निपटान करने के लिए गाईडलाईन का उल्लंघन किया जा रहा है।
शाकम्भरी प्लांट लगाने के लिए सरकारी जमीन पर कब्जा किया गया है। यह मामला सामने आया तो चुपचाप तहसीलदार को जांच के लिए भेजा गया था। बताया जा रहा है कि बिना कोई निष्कर्ष निकाले जांच बंद कर दी गई। जानबूझकर जांच को छिपाया गया। प्लांट के तीन दिशाओं में जमीन कब्जाई गई है। अभी भी प्लांट किनारे जंगल को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
ऐसा ही कुछ मां मंगला इस्पात नटवरपुर का भी है। इस प्लांट ने तो अंदर का पानी जंगल में छोडऩे के लिए रोड किनारे नाली भी बनाई है। मेन रोड से करीब तीन किमी अंदर जंगल के बीच स्थित प्लांट तक रोड ही नहीं है। पूर्व से निर्मित कच्ची रोड को ही भारी वाहनों के लिए उपयोग किया जा रहा है। इसी रोड से नटवरपुर, चक्रधरपुर और कुछ गांवों के लोग आवाजाही करते हैं। पूरी सडक़ पर कोल डस्ट पटी हुई है। बड़े-बड़े गड्ढे भी हो चुके हैं। इसी सडक़ पर रोज प्लांट के श्रमिक भी आनाजाना करते हैं। मां मंगला इस्पात के गेट से अंदर तक पक्की सडक़ बनाई गई है लेकिन पहुंच मार्ग को खस्ताहाल कर दिया गया है।
मां मंगला इस्पात के सामने से नाली बनाकर जंगल के अंदर में पानी छोड़ा जाता है। नटवरपुर के ग्रामीणों ने बताया कि प्लांट के गंदे पानी की वजह से उनकी फसलों से पैदावार कम हो गई है। यह गंदा पानी जंगल से होकर खेतों में पहुंच रहा है। रोड पर गिरे कोल डस्ट के कारण जंगल किनारे के जंगल में मिट्टी की सतह काली हो चुकी है। इससे नए पौधे नहीं उग पाते। यही डस्ट ज्यादा बारिश होने पर बहकर खेतों में पहुंच रही है।
इस तरह के उद्योग लगातार पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। पर्यावरण विभाग को लगातार निरीक्षण करना होता है। जब भी किसी प्लांट की जांच का प्रोग्राम तैयार होता है तो पहले से खबर कर दी जाती है। अचानक जांच पर कभी भी टीम नहीं पहुंचती। प्रदूषण को रोकने के बजाय प्लांट की गड़बड़ी को छिपाने लीपापोती की जाती है। मां शाकम्भरी स्टील और मां मंगला इस्पात की भी ठीक से जांच नहीं की जाती।