जशपुर :- छत्तीसगढ़ के जिला जशपुर शहर के नजदीक ग्राम जरिया में दो दंतैल गजराजों के घुस आने से दिनभर अफरा तफरी मची रही। गजराजों को देखने की उत्सुकता में स्थानीय रहवासियों के साथ शहर से भी लोग पहुंचने लगे।
भीड़ को देखते हुए वनविभाग ने बीटगार्ड सहित वनकर्मियों की गांव में ड्यूटी लगा दी है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, गुरूवार की सुबह जरिया के ग्रामवासी सोकर उठे तो गांव के सड़क और मैदान में दंतैल चहल कदमी करते दिखाई दिये। हाथियों को सामने देख कर ग्रामीण दहशत में आ गए। बस्ती में घुस आए हाथियों को खदेड़ने के लिए ग्रामवासी एकजुट हुए और शोर मचा कर हाथियों को गांव के पास के जंगल में खदेड़ा। बस्ती से निकल कर दोनों दंतैल जंगल और नहर के बीच में दिन भर डेरा जमाएं रहे।
हाथियों की हलचल पर नजर रखने के लिए वनविभाग के कर्मचारी मौके पर डटी रही। उल्लेखनीय है कि शहर और इसके आसपास में हाथियों की आवाजाही बहुत ही कम होती है। जरिया,मनोरा,सिटोंगा,आटापाट के जंगल में हाथियों की हलचल देखी गई है। बीते साल आटापाट और इसके आसपास के क्षेत्र में जन और संपत्ति हानि की घटनाएं भी हुई थी।
बता दें कि, जरिया में वनकर्मी ग्रामीणों को हाथियों से दूरी बनाएं रखने की समझाइश दे रहें हैं। जिले में हाथी प्रभावित क्षेत्र का तेजी से विस्तार होता जा रहा है। जिले के आठ में 5 ब्लाक फरसाबहार, पत्थलगांव, दुलदुला, कुनकुरी और बगीचा घोर हाथी प्रभावित हैं। जबकि जशपुर, मनोरा में साल में दो तीन बार हाथियों की हलचल देखी जाती है। जानकारों के अनुसार पड़ोसी राज्य ओडिशा और झारखंड में तेजी से विकसित हो रहे उत्खनन उद्योग से सिमट रहे वन्य क्षेत्र से बेघर हुए हाथी सुरक्षित ठिकाने की तलाश में छत्तीसगढ़ की ओर पलायन कर रहे हैं।
जिले के तपकरा,कुनकुरी और दुलदुला वन परिक्षेत्र में स्थित घने जंगल और पानी की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता अतिकायों को खूब भा रही है। यहीं कारण है कि,इन क्षेत्रों में लगभग साल भर हाथियों की हचचल बनी रहती है।
हाथियों पर निगरानी की समस्या
जिले में बढ़ते हुए हाथियों की हलचल से जन और संपत्ति की आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है। बावजूद इसके अब तक हाथियों की हलचल की निगरानी की ठोस व्यवस्था नहीं हो पाई है। वनविभाग हाथियों की जानकारी जुटाने के लिए प्रभावित क्षेत्र के रहवासियों पर ही निर्भर है। इससे हाथियों की हलचल की सही जानकारी समय पर मिल पाना कठिन होता है।
रेडियो कालर लगाकर हाथियों के समूह पर नजर रखने की व्यवस्था पूरी तरह से विफल हो चुकी है। विभाग ने गौतमी नामक मादा हाथी को कालर आईडी पहनाया था। लेकिन कोरोना संकट के दौरान यह कालर आईडी टूट कर गिर गया था। हालांकि कालर आईडी दल में विचरण करने वाले गजराजों की निगरानी के लिए ही कारगर साबित होता है। जानकारों का मानना है कि दल से अलग हो कर भटकने वाले हाथी अधिक आक्रामक होते हैं। जन और संपत्ति हानि इन्ही के कारण अधिक होती है।
रिपोर्टर- गजाधर पैंकरा, जशपुर