समितियों और मिलर्स की साठगांठ: कागजों में धान परिवहन का बड़ा घोटाला, सरकार को करोड़ों की चपत

समितियों और मिलर्स की साठगांठ: कागजों में धान परिवहन का बड़ा घोटाला, सरकार को करोड़ों की चपत

रोहित यादव ( प्रतापपुर ):- छत्तीसगढ़ में धान खरीदी प्रणाली में हो रही व्यापक अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का एक बड़ा घोटाला सामने आया है। समितियों के प्रबंधक और मिलर्स के बीच घनिष्ठ साठगांठ से कागजों में धान का परिवहन दिखाकर सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान पहुंचाया जा रहा है। यह भ्रष्टाचार केवल किसानों के हितों का हनन नहीं कर रहा, बल्कि राज्य की आर्थिक व्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। अधिकारियों की मिलीभगत से यह खेल पिछले कई सालों से जारी है, जिसके कारण शासन को भारी वित्तीय नुकसान हो रहा है।

कैसे चल रहा है गोरखधंधा?

समिति प्रबंधक किसानों को कुछ पैसों का लालच देकर उनके बचत रकबे में धान की फर्जी एंट्री करवा देते हैं। इसके बाद, ये धान कागजों में मिलर्स को बेचा हुआ दिखाकर 2,000-2,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान लेते हैं। लेकिन, कागजों पर इसे 3,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचने का दावा किया जाता है, और बोनस सहित शेष राशि वसूल की जाती है। इस प्रकार सरकार को झूठे दस्तावेजों के माध्यम से चूना लगाया जाता है और वास्तविक धान का कोई परिवहन नहीं होता।

खाली गाड़ियों का खेल: GPS का दुरुपयोग

समितियां और मिलर्स इस घोटाले को अंजाम देने के लिए GPS लगे ट्रकों का दुरुपयोग करते हैं। इन ट्रकों की तस्वीरें GPS ट्रैकिंग सिस्टम पर अपलोड की जाती हैं, जिससे यह दिखाया जाता है कि गाड़ी में धान लोड किया गया है। असल में, ये गाड़ियां खाली होती हैं और समिति में वापस लौट आती हैं। इस तरीके से कागजों में पूरा धान परिवहन दिखाया जाता है, जबकि असल में किसी भी ट्रक में एक दाना भी धान नहीं लाया जाता। यह पूरी साजिश रात के समय की जाती है, जब अधिकारी और कर्मचारी सतर्क नहीं होते।

सरकार को करोड़ों का नुकसान

छत्तीसगढ़ सरकार का लगभग 25% बजट धान खरीदी प्रक्रिया में खर्च होता है। इस तरह के घोटाले से न केवल सरकार की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ रहा है, बल्कि राज्य के किसानों को भी उनके हक से वंचित किया जा रहा है। समितियों और मिलर्स की साठगांठ के चलते हर साल लाखों क्विंटल धान का कागजी उठाव किया जाता है, जिससे सरकार को भारी वित्तीय नुकसान हो रहा है।

रात्रि में चलता है गोरखधंधा

यह गोरखधंधा ज्यादातर रात के समय किया जाता है, जब प्रशासनिक अधिकारी अपनी ड्यूटी से मुक्त होते हैं। समितियों में इस प्रक्रिया को इतनी चुपके से अंजाम दिया जाता है कि किसी को भी शक नहीं होता। समितियों के भीतर करोड़ों रुपये का गबन किया जाता है, और अधिकारियों की अनदेखी से यह खेल लंबी अवधि से चल रहा है।

अधिकारियों की मिलीभगत या लापरवाही?

समिति प्रबंधक और मिलर्स के बीच जबरदस्त मिलीभगत हो रही है, जिसके चलते सरकार और किसानों दोनों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। अधिकारी इस घोटाले से अनजान बने हुए हैं या उनकी संलिप्तता भी हो सकती है। इस भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए किसी भी ठोस कदम का अभाव है, जिससे यह गोरखधंधा बढ़ता जा रहा है।

समस्याओं पर कार्रवाई की मांग

यह घोटाला राज्य के विकास और किसानों की योजनाओं को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। अब समय आ गया है कि प्रशासन इस पर कड़ी कार्रवाई करे और धान खरीदी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। सभी समितियों का ऑडिट किया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में इस प्रकार के भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सके।

छत्तीसगढ़ में हो रही इस प्रकार की अनियमितताएं न केवल राज्य सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रही हैं, बल्कि किसानों के बीच सरकार के प्रति विश्वास को भी कमजोर कर रही हैं। यह आवश्यक है कि सरकार इस घोटाले की गंभीरता को समझे और त्वरित कार्रवाई करे ताकि राज्य और किसानों के हितों की रक्षा की जा सके।