पहाड़ी पगडंडियों से गुजरती शिक्षा की रोशनी: बलरामपुर के बचवार गांव में बदलाव की कहानी

पहाड़ी पगडंडियों से गुजरती शिक्षा की रोशनी: बलरामपुर के बचवार गांव में बदलाव की कहानी

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में प्रदेश के पिछड़े, जनजातीय और दुर्गम अंचलों तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने का जो अभियान शुरू हुआ है, उसकी गूंज अब जमीन पर सुनाई देने लगी है।

प्रदेश की नीति के अंतर्गत स्कूलों के युक्तियुक्तकरण और शिक्षा के विस्तार से अब वे इलाके भी रोशन हो रहे हैं, जहां कभी स्कूल पहुंचना भी एक सपना था।

इस बदलाव की एक जीवंत मिसाल है बलरामपुर विकासखंड का अति दुर्गम और जनजातीय गांव बचवार, जहां शिक्षा अब केवल अधिकार नहीं रही, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और उम्मीद का माध्यम बन चुकी है। बचवार गांव तक आज भी न सड़कों की सुविधा है, न ही परिवहन की कोई व्यवस्था। यहां पहुंचने के लिए 8 से 10 किलोमीटर लंबी पहाड़ी पगडंडी पार करनी होती है, जो घने जंगलों, वीरान घाटियों और पहाड़ियों से होकर गुजरती है। लेकिन इस कठिन रास्ते पर रोजाना उम्मीदों की एक नई सुबह उतरती है-शिक्षकों के माध्यम से।

यहां के शिक्षक उन चुनौतियों से नहीं घबराते, जो भौगोलिक कठिनाइयों से उत्पन्न होती हैं। सीमित संसाधनों, नेटवर्क विहीनता और सामाजिक एकांतता के बावजूद उन्होंने अपने कर्तव्य को सेवा का धर्म मानते हुए बच्चों को शिक्षा से जोड़ा है। इन शिक्षकों ने केवल पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाया, बल्कि गांव की चेतना को शिक्षित किया है।

बचवार में आज भी बिजली, पानी, स्वास्थ्य और संचार जैसी मूलभूत सुविधाएं नदारद हैं, लेकिन शिक्षा सबसे पहले पहुंची है। स्कूल भवन भले ही साधारण हो, लेकिन यहां पढ़ने वाले बच्चों की आंखों में असाधारण सपने पल रहे हैं। शिक्षक न केवल पढ़ा रहे हैं, बल्कि बच्चों में आत्मविश्वास और भविष्य के प्रति विश्वास भी भर रहे हैं।

यह पहल बलरामपुर जैसे पिछड़े जिले के लिए किसी क्रांति से कम नहीं है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की विकासोन्मुख नीतियों और शिक्षा विभाग की सक्रियता के चलते आज छत्तीसगढ़ के दुर्गम अंचलों में भी शिक्षा की अलख जल रही है।

बचवार गांव की यह कहानी न सिर्फ प्रेरक है, बल्कि यह दिखाती है कि अगर इच्छाशक्ति और सेवा भावना हो, तो कोई भी भौगोलिक बाधा शिक्षा की रोशनी को नहीं रोक सकती।

यह बदलाव केवल स्कूलों के खुलने तक सीमित नहीं है, यह बदलाव बच्चों की सोच, सपनों और समाज में हिस्सेदारी के अधिकार तक पहुंच चुका है। निश्चित रूप से यह वह सच्ची "जनशक्ति" है, जो छत्तीसगढ़ को एक समतामूलक और शिक्षित समाज की ओर ले जा रही है।