विशेष लेख:विषय बाध्यता समाप्त से दुरस्थ क्षेत्रों के विद्यालयों में आयेगी शिक्षा खुशहाल

किसी भी देश को खुशहाल उस देश की शिक्षा और संस्कृति को मानने वाली होती है, यदि देश का शिक्षा व्यवस्था ठीक नही रहेगा तो उस देश का उत्थान नामुमकिन है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थिति को कुछ सर्वे किये संस्थानों ने समाचार पत्रों में बताया गया है कि नवमी के बच्चे हिंदी पढ़ने और गणित की संक्रियाओ को करने में असहज महसूस करते हैं, मिडिल स्कूलों में भी शिक्षा की व्यवस्था की स्थिति कुछ ऐसी ही है, दुरस्थ दुर्गम क्षेत्र के विद्यालयों की बात दुर ग्रामीण अंचलों का विद्यालय में शिक्षा का स्थिति खराब है। यदि इन विद्यालयों शिक्षा कि स्थिति का जायजा लिया जाए तो शिक्षक बच्चों का स्कूल नही आना या शिक्षक कमी की बात कहेंगे, और इस विषय का शिक्षक नही है इसलिए इस विषय में बच्चे कमजोर है,लेकिन विद्यार्थी उपस्थित पंजी देखें तो पंजी में बच्चों की उपस्थिति ठीक रहेगी । शिक्षक की कमी की बात सही है
शिक्षक का इन दुर्गम दुरस्थ क्षेत्रों और ग्रामीण अंचलों में होती है, स्थानांतरण निति से स्थानांतरण उपरांत ये अपने मनपसंद स्थानों चले जाते जो कि इनका अधिकार है, किन्तु इस निति से ये दुरस्थ,दुर्गम और ग्रामीण अंचलों में विद्यालय में शिक्षक का पुन: अभाव हो जाता है।
कुछ वर्ष पूर्व ,पुर्व मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने आदेश निकाला कि शिक्षकों के पदोन्नति और नियुक्ति में मिडिल स्कूलों के लिए विषय बाध्यता खत्म की जाती है, यह निर्णय स्वागत योग्य है क्योंकि इससे कोई भी शिक्षक यह नही कह सकेगा की फलाने विषय का शिक्षक नही है इसलिए पढाई में बच्चे कमजोर है। यदि शिक्षक नही है सरकार शिक्षक भर्ती नही करा सकता तो वहां बच्चे को पढाई नही मिलेगा क्या ? कि उनकी व्यवस्था देखी जाय। अतः यह निर्णय पुर्व वर्ती सरकार की सही है। यह कहना कि मिडिल स्कूलों में विषय विशेषज्ञ ही गुणवत्ता पुर्ण पढाई करवा सकते हैं,अव्यवहारिक है। मिडिल स्कूलों के पाठ्यक्रम में सभी विषय की पढाई सामान्य रहता है, विषय के पुर्ण गहराई में उतरने जैसा पाठ्यक्रम नही रहता है,कोई भी आदमी आठवीं पढ़कर ही स्नातक करके मिडिल स्कूल का शिक्षक बनता है । स्नातक तक हिन्दी और अंग्रेजी पढ़ता ही है। जिससे वह इन विषय को बोल भी सकता है समझ भी सकता है, दसवीं तक में हिन्दी अंग्रेजी संस्कृत का व्याकरण और अन्य पढ़ ही लिए रहता है, इसी प्रकार विज्ञान सामाजीक विज्ञान भी दसवीं में पढता ही है फिर यह कहना कि फलाने विषय वाले फलाने विषय नही पढ़ा सकते हैं। और यही शालाओं का निजी करण हो जाए तो सब सभी विषय पढ़ा लेंगे। वर्तमान में बहुत से विषय विशेषज्ञ हास्टल अधिक्षक, शैक्षिक समन्वय, मंडल संयोजक, है इससे पढाई में विध्न होता है। यदि शिक्षकों को दिमाग में बात बैठा दिया जाए कि आपको ही पढ़ाना है तो वह पढ़ायेंगे ही।
वास्तव में सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है कि मिडिल स्कूलों में विषय बाध्यता समाप्त किया जाए, ताकि ग्रामीण परिवेश के बच्चे को शिक्षा मिले, विषय विशेषज्ञ होंगे तभी पढाई होगी ऐसी अवधारणा समाप्त हो।