साकेत नगर कालीबाड़ी में दुर्गा पूजा का समापन:शंख बजाकर और सिंदूर खेला के साथ मां को दी विदाई
साकेत नगर कालीबाड़ी में दुर्गा पूजा का समापन:शंख बजाकर और सिंदूर खेला के साथ मां को दी विदाई
9 दिनों तक अपने मायके में समय बिताकर रविवार को मां दुर्गा विदा हो गई, उनको विदा करने के लिए साकेत नगर स्थित कालीबाड़ी में सिंदूर खेला का आयोजन किया गया। लाल पार की सफेद साड़ी पहने सभी महिलाएं पूजा की थाली लिए मां दुर्गा की आराधना में पहुंचीं। भक्ति और शक्ति के अनूठे समावेश में सभी ने मिल कर ढाक की धुन और शंख बजाते हुए मां दुर्गा की आरती की। इसके बाद पान के पत्ते से बंगाली समाज की महिलाओं ने दुर्गा मां को सिंदूर लगाकर बाद में अपने सुहाग की कामना करते हुए सभी ने एक दूसरे के साथ सिंदूर खेला। इस अवसर पर पहले सुबह मां का घोट विसर्जन किया गया, जिसमें कलश/ घाट और मूर्तियों को हिलाकर उन्हें विसर्जित किया जाता है। इसके पश्चात सिन्दूर खेला शुरु हुआ। जिसमें पहले सीनियर सिटीजन ने मां का वरण किया। इसमें दुर्गा मां को सिन्दूर लगाया जाता है, मिठाई खिलाई जाती है। दुर्गा मां के साथ श्री गणेश, लक्ष्मी जी, सरस्वती जी और कार्तिक जी को भी वरण किया जाता है। वरण के बाद महिलाएं एक दूसरे को सिन्दूर लगाकर अपने सुहाग की कामना करती हैं। भोग प्रसाद वितरण के बाद मां के विसर्जन की तैयारी की गयी। मां के विसर्जन के बाद सबने एक दूसरे को विजय दशमी की शुभकामनाएं देते हुए 'शुभो बिजोया' बोला। विजय दशमी के दिन 'शुभो विजोया' बोलकर एक दूसरे को बधाई देते हैं। 400 साल पुरानी परंपरा है सिंदूर खेला सिंदूर खेला को देवी पक्ष के समापन के रूप से मनाते हैं। बंगाली समाज नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा को बेटी के रूप में कालीबाड़ी में लाते हैं जहां उनकी विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा उत्सव के समापन पर मां की विदाई बेटी के समान की जाती है, इस मौके पर महिलाएं देवी को सिंदूर अर्पित करती हैं और बाद में एक दूसरे को सिंदूर लगाकर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, इसी परंपरा को 'सिंदूर खेला' कहा जाता है।
9 दिनों तक अपने मायके में समय बिताकर रविवार को मां दुर्गा विदा हो गई, उनको विदा करने के लिए साकेत नगर स्थित कालीबाड़ी में सिंदूर खेला का आयोजन किया गया। लाल पार की सफेद साड़ी पहने सभी महिलाएं पूजा की थाली लिए मां दुर्गा की आराधना में पहुंचीं। भक्ति और शक्ति के अनूठे समावेश में सभी ने मिल कर ढाक की धुन और शंख बजाते हुए मां दुर्गा की आरती की। इसके बाद पान के पत्ते से बंगाली समाज की महिलाओं ने दुर्गा मां को सिंदूर लगाकर बाद में अपने सुहाग की कामना करते हुए सभी ने एक दूसरे के साथ सिंदूर खेला। इस अवसर पर पहले सुबह मां का घोट विसर्जन किया गया, जिसमें कलश/ घाट और मूर्तियों को हिलाकर उन्हें विसर्जित किया जाता है। इसके पश्चात सिन्दूर खेला शुरु हुआ। जिसमें पहले सीनियर सिटीजन ने मां का वरण किया। इसमें दुर्गा मां को सिन्दूर लगाया जाता है, मिठाई खिलाई जाती है। दुर्गा मां के साथ श्री गणेश, लक्ष्मी जी, सरस्वती जी और कार्तिक जी को भी वरण किया जाता है। वरण के बाद महिलाएं एक दूसरे को सिन्दूर लगाकर अपने सुहाग की कामना करती हैं। भोग प्रसाद वितरण के बाद मां के विसर्जन की तैयारी की गयी। मां के विसर्जन के बाद सबने एक दूसरे को विजय दशमी की शुभकामनाएं देते हुए 'शुभो बिजोया' बोला। विजय दशमी के दिन 'शुभो विजोया' बोलकर एक दूसरे को बधाई देते हैं। 400 साल पुरानी परंपरा है सिंदूर खेला सिंदूर खेला को देवी पक्ष के समापन के रूप से मनाते हैं। बंगाली समाज नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा को बेटी के रूप में कालीबाड़ी में लाते हैं जहां उनकी विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा उत्सव के समापन पर मां की विदाई बेटी के समान की जाती है, इस मौके पर महिलाएं देवी को सिंदूर अर्पित करती हैं और बाद में एक दूसरे को सिंदूर लगाकर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, इसी परंपरा को 'सिंदूर खेला' कहा जाता है।