जशपुर जिले के इस हॉस्टल में बच्चों से कराई जा रही कूड़ा कचरा फेंकने का काम " वीडियो आया सामने.... पढ़िए पूरी खबर

जशपुर जिले के इस हॉस्टल में बच्चों से कराई जा रही कूड़ा कचरा फेंकने का काम " वीडियो आया सामने.... पढ़िए पूरी खबर

जशपुर। प्री-मैट्रिक आदिवासी बालक छात्रावास तपकरा में रविवार सुबह का दृश्य व्यवस्था की सच्चाई उजागर करता दिखा। छात्रावास परिसर में नाबालिग छात्र हाथ में बेलचा और घमेला लिए साफ-सफाई करते नजर आए। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह कोई पहली घटना नहीं है, हॉस्टल में बच्चों से नियमित तौर पर मजदूरी जैसे काम करवाए जाते हैं, जबकि परिसर में पहले से ही एक नियमित सफाई कर्मचारी (स्वीपर) पदस्थ है। इसके बावजूद बच्चों से श्रमिक कार्य कराना न सिर्फ गंभीर लापरवाही है, बल्कि शिक्षा व बाल संरक्षण कानूनों की खुली अवहेलना है।

छात्रावास अधीक्षक की मौन सहमति या निष्क्रियता से यह कार्य छात्र हितों को ठेस पहुंचा रहा है। छात्रों से शारीरिक श्रम कराना न केवल अनैतिक है, बल्कि शिक्षा के उद्देश्य और मानवीय अधिकारों के भी विपरीत है। ग्रामीणों ने बताया कि सफाईकर्मी की मौजूदगी में भी बच्चों से यह काम करवाना, अधीक्षक की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने जैसा है। एक ग्रामीण महिला ने कहा, "हम बच्चे को पढ़ाई के लिए भेजते हैं, न कि बेलचा-घमेला उठाने के लिए। यह काम सफाईकर्मी का है, बच्चों से करवाना अन्याय है।"

इस मामले में जनजातीय कार्य विभाग के मंडल संयोजक लालदेव भगत ने स्पष्ट कहा, "रविवार की दिनचर्या में हल्की गतिविधियां जैसे बागवानी शामिल होती हैं, लेकिन यहां जो कार्य करवाया गया, वह श्रमिक श्रेणी में आता है। यह पूरी तरह से नियमों के विरुद्ध है और जांच योग्य है।"

शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act 2009) के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है, जिसमें किसी भी प्रकार का जबरन कार्य शामिल नहीं हो सकता। वहीं बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 के तहत बच्चों से शारीरिक श्रम कराना कानूनन दंडनीय अपराध है। ऐसे में यह संपूर्ण घटनाक्रम कानून और नैतिकता दोनों का उल्लंघन करता है।

सामाजिक संगठनों, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने इस पूरे मामले को गंभीर मानते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। साथ ही छात्रावास अधीक्षक की भूमिका पर सवाल उठाते हुए उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की गई है। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन और जनजातीय कार्य विभाग बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए क्या ठोस कदम उठाते हैं, ताकि भविष्य में किसी भी बालक को शिक्षा की जगह श्रमिक बनने को मजबूर न होना पड़े।