देवास के नागदा में भगवान की महाभारतकालीन प्राचीन गणेश प्रतिमा:पांच बुधवार दर्शन करने से पूरी होती है मनोकामना

देवास शहर से सात किलोमीटर दूर स्थित नागदा पुरातात्विक संपदाओं से भरा पड़ा है। यहां आज भी कई प्रकार की प्राचीन देवी देवताओं की प्रतिमा एवं कलाकृति से निर्मित पत्थर बिखरे पड़े दिखाई देते है। यहां नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के पास प्राचीन श्रीसिद्धिविनायक गणेश मंदिर है। यहां भगवान गणेश की दुर्लभ प्राचीन प्रतिमा विराजित है। यह प्रतिमा एक हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है। इस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कब हुई इस बारे में प्रमाणिक जानकारी का अभाव है। यहां के स्थानीय लोग कहते हैं कि यह प्रतिमा प्राकृतिक रूप से प्रकट हुई है। मान्यता यह है कि मंदिर महाभारतकालीन है और इसकी स्थापना राजा परीक्षित के पुत्र राजा जन्मेजय ने करवाई थी। भगवान गणेश के मंदिर के समीप ही कुछ दूरी की परिधि में यहां माता चामुण्डा, भगवान भोलेनाथ के मंदिर भी है। इन सभी मंदिरों को नीलकंठेश्वर महादेव धाम के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो यहां भक्तों का प्रतिदिन आना जाना बना रहता है लेकिन गणेश पर्व के दस दिनों में यहां भक्तों की आस्था बढ़ जाती है और बड़ी संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन करने पहुंचते हैं। वटवृक्ष में निकली भगवान गणेश की आकृति यहां मंदिर के प्रांगण में सामने एक वटवृक्ष का पेड़ है उक्त पेड़ में भी भगवान श्री गणेश की स्वयंभू आकृति वाली प्रतिमा प्राकृतिक रूप से उभरी हुई दिखाई देती है। यह पुरी आकृति पेड़ की जड़ों से निर्मित है। पूर्व में यह पेड़ मंदिर के आसपास फैला हुआ था लेकिन कुछ दिनों पूर्व हवा आंधी व पेड़ की लंबी आयु के चलते इसकी कुछ शाखाएं टूट गई। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के साथ-साथ उक्त पेड़ पर बने श्री गणेश की भी पूजा अर्चना करते हैं। दर्शन करने के दूर-दूर से आते हैं भक्त इंदौर सहित अन्य शहरों से भी यहां भक्त भगवान गणेश के दर्शन करने पहुंचते हैं। इंदौर में जिस तरह खजराना गणेश मंदिर, उज्जैन में चिंतामण मंदिर हैं। उसी तरह देवास में नागदा स्थित प्राचीन गणेश मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। मगर इंदौर-उज्जैन की तुलना में यहां मंदिर का सौंदर्यीकरण तथा विस्तार नहीं हो पाया है। कई मुनियों ने यहां की तपस्या इतिहासकार दिलीप सिंह जाधाव ने बताया कि श्री सिद्धि विनायक भगवान गणेश का यह मंदिर कई वर्षों से प्राचीन है। देवास की परिधि में इस प्रकार का गणेश मंदिर आसपास कहीं नहीं है। नागदा की जब बसाहट हुई थी तब यहां करीब 30 हजार की आबादी थी। नागदा के सामने देवास छोटा सा कस्बा था यहां का काफी पुराना इतिहास है। एबी रोड़ देवास से निकलने पर लोग धीरे-धीरे सड़क किनारे बसते गए। मंदिर की स्थापना के बारे में प्रमाणित जानकारी तो नहीं है लेकिन यह वर्षों पुराना है। ऐसा माना जाता है कि नागदा नगर की स्थापना व बसावट जब हुई होगी तब भगवान गणेश को यहां स्थापित किया गया होगा। क्योंकि किसी भी कार्य के करने से पहले भगवान गणेश की स्थापना व पूजा की जाती है। इस क्षेत्र में कई मुनियों ने आकर कई वर्षों तक तपास्या की थी। उसके प्रमाण आज भी नागदा में मौजूद है। गणेश पर्व पर यह होंगे कार्यक्रम मंदिर पुजारी मनीष दुबे ने बताया कि प्रतिदिन भगवान का विशेष श्रृंगार के साथ पूजन अभिषेक होगा। प्रतिदिन सहस्त्र मोदकों से हवन किया जाएगा। पूजन, हवन की शुरुआत सुबह 9 बजे से की जाएगी। गणेशोत्सव के दौरान श्रद्धालु सुबह 5 बजे से लेकर रात 10 बजे तक पूजन, दर्शन-वंदन कर सकेंगे। सुबह-शाम 7.30 बजे आरती की जाएगी। अंतिम दिन गुलाल महोत्सव मनाया जाता है।

देवास के नागदा में भगवान की महाभारतकालीन प्राचीन गणेश प्रतिमा:पांच बुधवार दर्शन करने से पूरी होती है मनोकामना
देवास शहर से सात किलोमीटर दूर स्थित नागदा पुरातात्विक संपदाओं से भरा पड़ा है। यहां आज भी कई प्रकार की प्राचीन देवी देवताओं की प्रतिमा एवं कलाकृति से निर्मित पत्थर बिखरे पड़े दिखाई देते है। यहां नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के पास प्राचीन श्रीसिद्धिविनायक गणेश मंदिर है। यहां भगवान गणेश की दुर्लभ प्राचीन प्रतिमा विराजित है। यह प्रतिमा एक हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है। इस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कब हुई इस बारे में प्रमाणिक जानकारी का अभाव है। यहां के स्थानीय लोग कहते हैं कि यह प्रतिमा प्राकृतिक रूप से प्रकट हुई है। मान्यता यह है कि मंदिर महाभारतकालीन है और इसकी स्थापना राजा परीक्षित के पुत्र राजा जन्मेजय ने करवाई थी। भगवान गणेश के मंदिर के समीप ही कुछ दूरी की परिधि में यहां माता चामुण्डा, भगवान भोलेनाथ के मंदिर भी है। इन सभी मंदिरों को नीलकंठेश्वर महादेव धाम के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो यहां भक्तों का प्रतिदिन आना जाना बना रहता है लेकिन गणेश पर्व के दस दिनों में यहां भक्तों की आस्था बढ़ जाती है और बड़ी संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन करने पहुंचते हैं। वटवृक्ष में निकली भगवान गणेश की आकृति यहां मंदिर के प्रांगण में सामने एक वटवृक्ष का पेड़ है उक्त पेड़ में भी भगवान श्री गणेश की स्वयंभू आकृति वाली प्रतिमा प्राकृतिक रूप से उभरी हुई दिखाई देती है। यह पुरी आकृति पेड़ की जड़ों से निर्मित है। पूर्व में यह पेड़ मंदिर के आसपास फैला हुआ था लेकिन कुछ दिनों पूर्व हवा आंधी व पेड़ की लंबी आयु के चलते इसकी कुछ शाखाएं टूट गई। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के साथ-साथ उक्त पेड़ पर बने श्री गणेश की भी पूजा अर्चना करते हैं। दर्शन करने के दूर-दूर से आते हैं भक्त इंदौर सहित अन्य शहरों से भी यहां भक्त भगवान गणेश के दर्शन करने पहुंचते हैं। इंदौर में जिस तरह खजराना गणेश मंदिर, उज्जैन में चिंतामण मंदिर हैं। उसी तरह देवास में नागदा स्थित प्राचीन गणेश मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। मगर इंदौर-उज्जैन की तुलना में यहां मंदिर का सौंदर्यीकरण तथा विस्तार नहीं हो पाया है। कई मुनियों ने यहां की तपस्या इतिहासकार दिलीप सिंह जाधाव ने बताया कि श्री सिद्धि विनायक भगवान गणेश का यह मंदिर कई वर्षों से प्राचीन है। देवास की परिधि में इस प्रकार का गणेश मंदिर आसपास कहीं नहीं है। नागदा की जब बसाहट हुई थी तब यहां करीब 30 हजार की आबादी थी। नागदा के सामने देवास छोटा सा कस्बा था यहां का काफी पुराना इतिहास है। एबी रोड़ देवास से निकलने पर लोग धीरे-धीरे सड़क किनारे बसते गए। मंदिर की स्थापना के बारे में प्रमाणित जानकारी तो नहीं है लेकिन यह वर्षों पुराना है। ऐसा माना जाता है कि नागदा नगर की स्थापना व बसावट जब हुई होगी तब भगवान गणेश को यहां स्थापित किया गया होगा। क्योंकि किसी भी कार्य के करने से पहले भगवान गणेश की स्थापना व पूजा की जाती है। इस क्षेत्र में कई मुनियों ने आकर कई वर्षों तक तपास्या की थी। उसके प्रमाण आज भी नागदा में मौजूद है। गणेश पर्व पर यह होंगे कार्यक्रम मंदिर पुजारी मनीष दुबे ने बताया कि प्रतिदिन भगवान का विशेष श्रृंगार के साथ पूजन अभिषेक होगा। प्रतिदिन सहस्त्र मोदकों से हवन किया जाएगा। पूजन, हवन की शुरुआत सुबह 9 बजे से की जाएगी। गणेशोत्सव के दौरान श्रद्धालु सुबह 5 बजे से लेकर रात 10 बजे तक पूजन, दर्शन-वंदन कर सकेंगे। सुबह-शाम 7.30 बजे आरती की जाएगी। अंतिम दिन गुलाल महोत्सव मनाया जाता है।